तुमसे क्या-क्या छुपा पाऊँगा | मृत्युंजय

तुमसे क्या-क्या छुपा पाऊँगा | मृत्युंजय

तुमसे क्या-क्या छुपा पाऊँगा | मृत्युंजय तुमसे क्या-क्या छुपा पाऊँगा | मृत्युंजय आठो रास्तों से चलकर आया है दुखसुख को बांधे आया है घसीट करऔर अबपटक देगा उसे तुम्हारी पूरी देह परतब कैसे क्या क्या छुपाऊँगा तुमसेकायनात समाई होगी जब तुममें किन किन चीजों से बचकर रहना है तुम्हेंइसकी लिस्ट है मेरे पासइसकी भी लिस्ट … Read more

विंडोज | मृत्युंजय

विंडोज | मृत्युंजय

विंडोज | मृत्युंजय विंडोज | मृत्युंजय खिड़कियाँ झाँकने की ललक पैदा करती थींमीठी हवा के झोंके आते थे उनसेतब खिड़कियों का मतलब एक अलग रास्ता भी हुआ करता थाजिससे निकल भागती थीं घरों में कैद की गई इच्छाएँ,स्त्रियाँ और सताए गए बच्चेकभी-कभार चोर भी आ जाया करते थे उसी रस्तेहालाँकि मजबूत लकड़ी के पल्ले खिड़कियों … Read more

रोना | मृत्युंजय

रोना | मृत्युंजय

रोना | मृत्युंजय रोना | मृत्युंजय मैं रोना चाहता हूँ! आँसू भरे हुए दिमाग पर जोर डाल रहा हूँकि बूँद भर भी नहीं निकलेगा आँसू रोना तो हमेशा किसी के सामने चाहिए अपने ही सामने बैठ कर रोनाहमेशा की तरफ इस बार भी कम टिका जब कि मैं चाहता हूँ खूब रोऊँ इधर उधर देख … Read more

रोजगार की बेरोजगारी | मृत्युंजय

रोजगार की बेरोजगारी | मृत्युंजय

रोजगार की बेरोजगारी | मृत्युंजय रोजगार की बेरोजगारी | मृत्युंजय बेरोजगारी के जमाने में पक्का बेरोजगार होना काफी मुश्किल है!क्योंकि इसका मतलब होगा बेरोजगारी का रोजगार। वैसे हर रोजगार रोज रोज किसी गार में जाने से कम नहींऔर ‘बे’ साहब का यह तखल्लुस भी काफी जमता है उनपरफिर भी दिल है के फुर्सत के बहाने … Read more

रंग-बिरंगे सपने | मृत्युंजय

रंग-बिरंगे सपने | मृत्युंजय

रंग-बिरंगे सपने | मृत्युंजय रंग-बिरंगे सपने | मृत्युंजय मैं रंग-बिरंगे सपनों केनीले दर्पण मेंलाल-हरे मस्तूलों वालीमटमैली सी नाव सँभालेयाद तुम्हारी झिलमिल करती श्याम देहकेसर की आभा सेगीला है घर बारमार कर मन बैठा हूँखाली मन की खाली बातेंरातें हैं बिलकुल खामोशडर लगता है।

मौत का एक दिन… | मृत्युंजय

मौत का एक दिन... | मृत्युंजय

मौत का एक दिन… | मृत्युंजय मौत का एक दिन… | मृत्युंजय (क) कोई बखत एक झिलंगा शाल लपेट चंद्रमा बराबर बिंदी लगालथ-पथ अपने घर की ओर लौटने लगी मौतपेड़ों की फुनगियों से उतर चुकी थी शामपरिंदे घोसलों में छुपे बच्चों को चुगाने लगे थेपृथ्वी कुहरे की चादर धीरे-धीरे ओढ़ रही थी सोने के पहलेअलाव … Read more

नींद टूटने के बाद | मृत्युंजय

नींद टूटने के बाद | मृत्युंजय

नींद टूटने के बाद | मृत्युंजय नींद टूटने के बाद | मृत्युंजय एक रोज उठूँगा अल-सुबहसारे अखबार भरे होंगे विज्ञापन की खबर सेटोटियों में नहीं होगा कोई बूँद पानीन्याय की देवी के हिजाब सेझाँकेगा दोमुँहा साँपहाथों में थाम हैंड ग्रेनेड भरे झोलेचप्पे-चप्पे पर मौजूद होंगे सिपाही अदृश्यशहरों के हर लैंपपोस्ट पर लटकेगीबेरोजगार दोस्तों की लाश … Read more

दो लाख किसानों के लिए एक कविता | मृत्युंजय

दो लाख किसानों के लिए एक कविता | मृत्युंजय

दो लाख किसानों के लिए एक कविता | मृत्युंजय दो लाख किसानों के लिए एक कविता | मृत्युंजय (पी. साईंनाथ और मैनेजर पांडेय को पढ़ते-सुनते) तुम्हारा छोटा बेटाएक विचित्र सपने में फँस चुका हैगोसाईं पवार। उसने सीधी कर ली है हल की फालहरिस सँभल नहीं रही हैउसकी रीढ़ पोरों में गड़ गई हैलोहे की मजबूत … Read more