तुमसे क्या-क्या छुपा पाऊँगा | मृत्युंजय
तुमसे क्या-क्या छुपा पाऊँगा | मृत्युंजय
आठो रास्तों से चलकर आया है दुख
सुख को बांधे आया है घसीट कर
और अब
पटक देगा उसे तुम्हारी पूरी देह पर
तब कैसे क्या क्या छुपाऊँगा तुमसे
कायनात समाई होगी जब तुममें
किन किन चीजों से बचकर रहना है तुम्हें
इसकी लिस्ट है मेरे पास
इसकी भी लिस्ट है कि तुम्हें क्या अच्छा नहीं लगता
मेरे पास ढेरों लिस्टें हैं
और गिनतियाँ मुझे पूरी आती हैं
दुख के सहानुभूति के और प्यार के खोल में
कई बार लिपटे लिथड़े
ख्यालों की रंगीन बुनाई
तुम्हें हैरान कर देती होगी अपने नंगेपन में
कई कई बार
तुम भी मुझसे कैसे कैसे क्या क्या छुपाती हो
रोजमर्रा की चीजें बताती हैं कभी-कभी
तुम नहीं
कैसे चलती है गृहस्थी की दुनिया
कैसे उबलती है छुपी हुई दुनिया
अगर पतीली के उपर झाँकोगे तो मुँह तुम्हारा ही जलेगा
मैंने ‘मैं’ से कहा
ढक्कन बंद कर दो बे!
मैं छुपाने निकलता हूँ
जिस तरह कोई अहेरी निकलता है
हाँके के साथ बाजे के साथ
औ’ तुम्हारे छुपाए को कुचलता चल निकलता हूँ
तुम छुपाई खेलते हुए बता देती हो छुपने का पता
पर सिर्फ पता पता होने से यह तय नहीं हो जाता कि वहाँ पहुँचा भी जा सकता है
चलो एक चेहरा बनाएँ
जहाँ छुपाना छुपा न हो
क्या इस पेंटिंग की नियति है खराब होना
नियति?
कैसी बातें कर रहे हो तुम
छोटे बच्चे जैसा चेहरा बना सकते हो एकदम पारदर्शी साफ-सफ्फाक
क्या हम प्यार करते हुए समय को रोक लेंगे
अभी मर जाएँ तो?
तुमने कहा
छुपाने को विकसित किया तुमने कला में
मैंने हिंसा की राह ली
अब मैं हिंसा को कला कहूँगा
हिंसा जब छुप जाएगी कला के पीछे
तब सही वक्त होगा
आसमान से छटपटाहट बरसने लगेगी
तुमने ‘है’ कहा
मैंने होने के बारे में बात की
तुमने रजिया सुल्ताना की कसम दिलाई थी मुझे
तुमने फिर कहा
अभी मर जाएँ हम ?
क्या हम प्यार करते हुए समय को रोक नहीं पाएँगे ?
तब मेरी बारी थी
और मुझे फोन की घंटियाँ सुनाई देने लगीं
ठीक तभी।
यही होता है हमेशा
हमेशा यही होता है
तुम्हारे बारे में सोचते-सोचते
मैं अपनी बातें सोचने लगता हूँ
तुम्हारे बारे में सोचना
आज तक नहीं आया मुझे