Posted inPoems

अद्भुत है कला | मत्स्येंद्र शुक्ल

अद्भुत है कला | मत्स्येंद्र शुक्ल अद्भुत है कला | मत्स्येंद्र शुक्ल धिन-धिन ता-धिन ता-धिनअपूर्व गति बज रहा तबलासितार-तार कसे ट्रिंग-ट्रिंगमध्‍यम गति :नूपुर-ध्‍वनि विचित्र आह्लादनदी बहती अतल अथाहस्‍वर संगम सांगीतिक सुख-धामजो आसनासीन सब कला-निपुणललाट-दीपित आभा ललामअंततः –बजा मृदंग बाँसुरी-संग जय-घोषगूँज उठा भवन-परिसर शांतसमवेत बोले सब अद्भुत है कलारात बीती सुबह अंबर खिला