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पलते रहे अँधेरे | मधुकर अस्थाना

पलते रहे अँधेरे | मधुकर अस्थाना पलते रहे अँधेरे | मधुकर अस्थाना रोजनामचे लिखे गएरोशन मीनारों केपलते रहे अँधेरेसाये में दीवारों के। उगे हुएकितने धब्बेसूरज के चेहरे परबैठा हुआभरी आँखों मेंकड़ी धूप का डरलाल बत्तियाँलील गई सपनेलाचारों के। खड़ी रही लाइन मेंअपने हिस्से कीदुनियाहार गएचढ़ते बाजारों के आगेगुनियाबने रहे तटबंधधार से दूरकिनारों के। माटी में […]