सिरहाने रात के | प्रयाग शुक्ला

सिरहाने रात के | प्रयाग शुक्ला

तकिये के सिरे पर सिर –

उखड़ी हुई नींद में
असंख्य गाँठों को खोलते
अँधेरे में दिखती चीजों की
शक्ल को पूरा करते –
खिड़की से झाँकते तारों
पत्तों को लाते करीब
करवट बदलते
चीजों की धड़कनों साँसों को
सुनते –

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सिरहाने रात के !