शहर अधूरा ही पहनता है 
हमें अपनी तमीज़ में 
उसकी तंग गुंबदों पर 
अधूरी एड़ियों के निशान हैं

जो गिर गए 
उन्हें कौन गिनता है

एक भगदड़ जज़्ब है 
उसके ठसाठस समय में 
सपनों में कोलाहल है 
उसकी पीठ पर लदी हैं 
बजबजाती मक्खियों की उफनी हुई बस्तियाँ 
और चट्टानी छाती पर लावे के तल से 
कोई झरना फूटता है

See also  फूल, तुम खिल कर झरोगे | त्रिलोचन

उसकी आँखों में मरीचिका 
और बदन में पिस्टन डाल गया है कोई 
फेफड़ों में हवा के वाल्व जाम हो रहे हैं 
घिसे जूते काटते हैं उसे 
अपनी बेतहाशा फूटती राहों पर 
हाँफता हुआ बेदम है

सुनो उसके शोर भरते गीतों में उसकी तड़प को 
भभकती चकाचौंध और 
चीजों से भरे दिमाग में 
उसकी जकड़न को 
वह ठहरना चाहता है 
रुककर मुस्कुराना चाहता है 
अपने नए नागरिक के जन्म पर 
असीसना चाहता है 
हारती हुई उम्मीदों को 
घर से छिपते हुए प्रेमियों को 
वह प्यार करना चाहता है

See also  मेरी माटी ! तुझे कैसे पाऊँ ? | भरत प्रसाद

शहर कुछ कुछ हम सा होना चाहता है !