सारा दिन | देवेंद्र कुमार बंगाली
सारा दिन | देवेंद्र कुमार बंगाली

सारा दिन | देवेंद्र कुमार बंगाली

सारा दिन | देवेंद्र कुमार बंगाली

सारा दिन पंछी-सा भटके
शाम हुई डालों से अटके।
अंधकार ने किया जुगाली
सूरज ने ये धूप उठा ली
लगा कि ये तारों के लटके।

       ये बादल
       वन
       ये तनहाई,
       पुरवा-पछवा की
       महँगाई,
दोस्‍त ये दुभाषिये निकट के।

       आँखों में,
       बाँहों में
       भर लें,
       मौसम को मनोनीत
       कर लें,
चाँद कभी आए तो छँट के।

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