सपनों की सौदागर | गाब्रिएल गार्सिया मार्केज
सपनों की सौदागर | गाब्रिएल गार्सिया मार्केज

सपनों की सौदागर | गाब्रिएल गार्सिया मार्केज – Sapanon Ki Saudagar

सपनों की सौदागर | गाब्रिएल गार्सिया मार्केज

एक दिन सुबह नौ बजे चमकती धूप में जब हम हवाना रिवियेरा होटल में नाश्ता कर रहे थे, एक विशाल समुद्री लहर ने समुद्री दीवाल के साथ चल रही तथा फुटपाथ पर पार्क कई कारों को अपनी चपेट में ले लिया और उनमें से एक को होटल की दीवाल पर दे मारा। ऐसा लगा मानों डायनामाइट का विस्फोट हुआ हो जिसने इमारत की बीसों मंजिल पर भगदड़ मचा दी तथा सामने की एक बड़ी खिड़की को चकनाचूर कर दिया। लॉबी के कई पर्यटक फर्नीचर के साथ हवा में उछाल कर पटक दिए गए, कुछ को शीशे की किरचों से चोट लगी। लहर अवश्य ही बहुत भयंकर रही होगी क्योंकि वह समुद्री दीवाल और होटल के के बीच की टू-वे सड़क को पार करने के बाद भी इतनी शक्तिशाली थी कि खिड़की को चूर-चूर कर गई।

क्यूबा के खुशनुमा स्वयंसेवियों ने अग्निशामक विभाग के साथ मिल कर छ घंटों में मलबे को हटाया और समुद्र की ओर का द्वार बंद करके दूसरा द्वार खोल दिया और सब कुछ पूर्ववत हो गया। सुबह किसी ने भी दीवाल में घुस गई कार की चिंता नहीं की, क्योंकि लोगों ने अनुमान लगा लिया कि वह अवश्य ही फुटपाथ पर पार्क की गई कारों में से एक होगी। परंतु जब क्रेन ने उसे उठाया तो स्टीयरिंग व्हील पर सीट बेल्ट से बँधी एक स्त्री मिली। धक्का इतना घातक था कि उसकी एक भी हड्डी साबुत नहीं बची थी। उसका चेहरा बिल्कुल बिगड़ चुका था, बूट फट गए थे, कपड़े चिथड़े हो गए थे। उसने सोने की मरकत की आँखों वाली एक सर्पाकार अँगूठी पहनी हुई थी। पुलिस ने पुष्टि की कि वह पुर्तगाली राजदूत और उनकी पत्नी की हाउसकीपर थी। वह दो वर्ष पूर्व उनके साथ हवाना आई थी और उस सुबह नई कार में शॉपिंग करने निकली थी। जब मैंने पेपर पढ़ा, उसके नाम ने कोई स्मृति नहीं जगाई लेकिन उसकी सर्पाकार अँगूठी और मरकत की आँखों ने मुझे चक्कर में डाल दिया। मुझे पता न चल सका कि वह उसे किस अँगुली में पहने हुए थी।

यह एक गंभीर खबर थी क्योंकि मुझे डर था, यह वही अविस्मरणीय स्त्री थी जिसका असली नाम मुझे कभी ज्ञात न हो सका था और जो वैसी ही अँगूठी अपनी दाहिनी तर्जनी में पहनती थी, जो उन दिनों आज से भी अधिक असाधारण था। मैं उससे चौंतीस वर्ष पूर्व वियेना में मिला था, उबले आलू के साथ सोसेज खाते और बीयर पीते हुए, उस मधुशाला में जहाँ लैटिन अमेरिकी छात्र अक्सर जाते थे। मैं उसी सुबह रोम से आया था और मुझे उस खूबसूरत गायिका के वक्ष, उसके कोट कॉलर पर पड़ी लोमड़ी की अलसाई पूँछ और उस सर्पाकार इजिप्शियन अँगूठी पर अपनी तत्काल की गई प्रतिक्रिया आज भी याद है। उसकी एक साँस में धातु की खनक के साथ बोली जा रही अनवरत स्पैनिश सुन कर मैंने सोचा कि लकड़ी की लंबी मेज पर वही एकमात्र ऑस्ट्रियन है। लेकिन ऐसा नहीं था, वह कोलंबिया में जन्मी थी और वह जब वह एक बच्ची थी तभी युद्ध के बीच संगीत और स्वर साधना करने ऑस्ट्रिया आई थी। वह करीब तीस साल की थी। उसने अपने शरीर की अच्छी देखभाल नहीं की थी। वह सुंदरी नहीं थी और समय के पहले उसकी उम्र दीखने लगी थी। लेकिन उसका व्यक्तित्व आकर्षक और प्रभावशाली था।

वियेना तब भी एक पुराना साम्राज्यवादी शहर था जो द्वितीय महायुद्ध के बाद दो अनमेल दुनिया के बीच छूट गया था। जिस कारण वह कालाबाजारी तथा अंतरराष्ट्रीय जासूसी के स्वर्ग में बदल गया था। मैं अपने भगोड़े हमवतन के लिए इससे उपयुक्त स्थान की कल्पना नहीं कर सकता था जो अभी भी मात्र अपने मूल स्थान के प्रति स्वामिभक्ति के कारण मधुशाला में छात्रों के उसी कोने में बैठती जबकि उसके पास इतने पैसे थे कि वह अपने टेबल पर बैठे सब साथियों के लिए भोजन खरीद सके। उसने कभी भी अपना असली नाम नहीं बताया और हम सदैव उसे वियेना में लैटिन अमेरिकी छात्रों द्वारा अन्वेषित जर्मन टंग ट्विस्टर नाम से जानते थे : फ़्राउ फ़्रिएडा। उससे मेरा परिचय कराए जाने के तत्काल बाद मैंने अपनी खुशनुमा बेताबी में उससे पूछा कि क्यूंडियो की हवादार चोटियों से इतनी दूर और भिन्न दुनिया में वह क्यों आई है और उसने धमाका किया

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“मैं स्वप्न बेचती हूँ।”

यथार्थ में यही उसका धंधा था। वह पुराने काल्डास के एक समृद्ध दुकानदार के ग्यारह बच्चों में तीसरी थी। ज्यों ही उसने बोलना सीखा, उसने सुबह नाश्ते के पहले भविष्यवाणी की उत्तम परंपरा का परिवार में प्रारंभ किया – सुबह जब रात के स्वप्न की भविष्यवाणी का गुण अपने शुद्धतम रूप में होता है। जब वह सात साल की थी, उसने स्वप्न देखा कि उसका एक भाई बाढ़ में डूब कर मर गया है। उसकी माँ ने निरे धार्मिक अंधविश्वास के कारण उस लड़के को दर्रे में तैरने की सख्त मनाही कर दी, जो उस लड़के का वक्त गुजारने का सर्वप्रिय तरीका था। मगर फ़्राउ फ़्रिएडा का भविष्यवाणी करने का तरीका निराला था।

उसने कहा, “उस स्वप्न का मतलब यह नहीं कि वह डूबने जा रहा है, लेकिन उसे मीठा नहीं खाना चाहिए।”

पाँच साल का लड़का जो पकवानों के बिना नहीं रह सकता था, उसे उसकी यह व्याख्या बड़ी क्रूर लगी। अपनी बेटी की भविष्यवाणी की प्रतिभा की कायल माँ ने उस चेतावनी का कड़ाई से पालन किया। परंतु उसकी चूक के पहले मौके में लड़का चोरी से मिठाई का जो टुकड़ा खा रहा था, उसके गले में फँस गया और उसे बचाने आ कोई उपाय नहीं था।

फ़्राउ फ़्रिएडा ने कभी नहीं सोचा था कि वह अपनी इस प्रतिभा से आजीविका चला सकेगी लेकिन जब वियेना की क्रूर सर्दियों ने उसे जकड़ लिया तो कोई उपाय नहीं रहा। तब उसे पहला घर जो रहने के लिए पसंद आया उसने वहाँ काम के लिए पूछा। वहाँ उससे पूछा गया कि वह क्या कर सकती है। उसने केवल सत्य बताया : “मैं स्वप्न देखती हूँ।” घर की महिला ने संक्षेप में जो पूछा, उसने बताया और उसकी नियुक्ति हो गई। छोटी-मोटी जरूरतों को पूरा करने लायक तन्ख्वाह थी, मगर उसे रहने के लिए एक अच्छा कमरा और तीन समय का भोजन मिलने लगा – खास कर नाश्ता, जब पूरा परिवार सब सदस्यों का तात्कालिक भविष्य जानने के लिए इकट्ठा होता : एक सुरुचिपूर्ण साहूकार पिता, रोमांटिक चेंबर म्युजिक में पागलपन की हद तक लगाव रखने वाली एक प्रसन्न महिला तथा ग्यारह और नौ साल के दोबच्चे। वे सब धार्मिक थे अतः पुराने विश्वासों की ओर उनका झुकाव था तथा फ़्राउ फ़्रिएडा को पाकर वे खुश थे। उसके लिए एकमात्र शर्त थी, अपने स्वप्नों द्वारा परिवार का भाग्य बाँचना।

लंबे समय तक उसने अपना कार्य भली-भाँति निभाया, खास कर युद्धकाल में जब यथार्थ दुःस्वप्नों से भी अधिक दारुण हो गया था। प्रतिदिन नाश्ते के समय यह बताना उसका काम था कि पूरे दिन किसको क्या करना है और कैसे करना है। अंततः उसके फलित परिवार के एकल आदेश बन गए। परिवार पर उसका पूर्ण नियंत्रण था, यहाँ तक कि साँस भी उसके आदेशानुसार ली जाती। जिन दिनों मैं वियेना में था, उस घर का मालिक मर गया। औदार्यवश अपनी संपत्ति का एक भाग वह फ़्राउ फ़्रिएडा के लिए इस शर्त पर छोड़ गया कि जब तक उसके स्वप्नों का अंत न हो जाए वह उसके परिवार के लिए स्वप्न देखती रहे।

दूसरे छात्रों की तरह ही बदहाली की परिस्थितियों में मैं वियेना में एक महीने से अधिक रहा। मैं पैसों का इंतजार कर रहा था, जो कभी आए ही नहीं। गरीबी की मार खाए हमारे इलाके में फ़्राउ फ़्रिएडा का आकस्मिक और दरियादिल आना मानों हमारे भोज का बायस बनता था। एक रात बीयर के नशे की झोंक में उसने मेरे कान में इस विश्वास से फुसफुसाया कि संदेह की कोई गुंजाइश न थी।

“मैं केवल यह बताने आई हूँ कि कल रात मैंने तुम्हारे बारे में स्वप्न देखा। तुम इसी वक्त यह जगह छोड़ दो और अगले पाँच साल तक वियेना मत लौटना।”

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उसका विश्वास इतना पक्का था कि मैंने उसी रात रोम जाने वाली आखिरी गाड़ी पकड़ी। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं उसके कहे से इतना प्रभावित था कि मुझे लगा, मैं एक भयंकर अनर्थ से बच निकला, अनर्थ जो कभी हुआ ही नहीं। मैं अब भी वियेना नहीं लौटा हूँ।

हवाना की दुर्घटना के पूर्व मैंने बार्सीलोना में उसे ऐसे आकस्मिक और अप्रत्याशित रूप से देखा था कि वह सब मुझे विस्मयकारी लगा। यह उस दिन की घटना है जिस दिन पाब्लो नेरुदा ने एक लंबी समुद्री यात्रा से वाल्पाराएसो की ओर जाते हुए गृहयुद्ध के बाद पहली बार स्पेन की धरती पर कदम रखा था। उनकी सुबह हमारे साथ सैकेंडहैंड किताबों की दुकानों की खाक छानते बीती, दुकानदार से उन्होंने पुरानी, पीली पड़ी खुली जिल्द की एक किताब खरीदी और उन्होंने उसकी इतनी कीमत दी जितनी रंगून में कॉन्सुलेट के रूप में उनकी दो महीने की तन्ख्वाह होती। भीड़ में वे एक हाथी की भाँति घूम रहे थे और एक बच्चे के से कौतुहल से प्रत्येक चीज के कार्य करने का तरीका देख रहे थे। उन्हें दुनिया एक बहुत बड़ा चाभी भरा खिलौना दीखती थी – खिलौना जिसे स्वयं जिंदगी ने अन्वेषित किया था।

हमारे मन में पुनरुत्थान काल के पोप की छवि के इतना निकट आने वाले किसी और व्यक्ति को मैं नहीं जानता – वे पेटू और नफासतपसंद व्यक्ति थे। अपनी इच्छा के विरुद्ध भी वे सदैव टेबल पर मुख्य स्थान ग्रहण करते। उनकी पत्नी मटिल्ड उनके गले के चारों ओर विब लगातीं जो नाइयों की दुकान का ज्यादा लगता, डायनिंगरूम का कम। लेकिन यही एकमात्र तरीका था, उन्हें सॉस से नहाने से बचाने का। वह कार्वालिराज का एक टिपिकल दिन था। दूसरों की प्लेटों को नजरों से निगलते हुए उन्होंने सर्जन की कुशलता से चीरते हुए तीन साबुत लॉबस्टर्स खाए। उन्होंने प्रत्येक प्लेट से इस खुशी के साथ थोड़ा-बहुत चखा कि दूसरों में भी खाने की इच्छा जग गई : गालिसिया की सीप, कैंटाब्रिया के मसल्स, एलिकांट का झींगा और कोस्टा ब्रावा के सी-क्यूकंबर्स। इस बीच फ़्रांसीसियों की भाँति उन्होंने खाने की दूसरी स्वादिष्ट चीजों – खासतौर पर चिली की प्रागैतिहासिक शेलफिश, जो उनके दिल में बसी थी – के अलावा किसी अन्य विषय पर बात नहीं की। अचानक उन्होंने खाना रोक दिया, अपने लॉबस्टर के एंटीना को घुमाया और मुझसे बड़ी धीमी आवाज में कहा :

“कोई मेरे पीछे है, जो मुझे लगातार घूर रहा है।”

मैंने उनके कंधे के ऊपर से देखा, यह सत्य था। तीन टेबल के बाद पुराने ढंग के फैशन का फेल्टहैट और बैंगनी रंग का स्कार्फ पहने एक निडर औरत आराम से खा रही थी और उन्हें घूर रही थी। मैंने तत्काल उसे पहचान लिया। वह बूढ़ी और थुलथुली हो गई थी, लेकिन थी वह फ़्राउ फ़्रिएडा ही, अपनी सर्पाकार अँगूठी के साथ।

वह नेपल्स से उसी जहाज पर यात्रा कर रही थी जिस पर नेरुदा और उनकी पत्नी थे। लेकिन उन्होंने जहाज पर एक-दूसरे को नहीं देखा था। हमने उसे अपने टेबल पर कॉफी के लिए आमंत्रित किया और कवि को चकित करने के ख्याल से उसे उसके स्वप्नों के विषय में बात करने को उकसाया। नेरुदा ने इस बातचीत में कोई दिलचस्पी नहीं ली। उन्होंने प्रारंभ में ही घोषणा कर दी कि उन्हें भविष्यवाणी वाले स्वप्नों में कोई विश्वास नहीं है।

“केवल कविता ही अद्वितीय है,” उन्होंने कहा।

लंच के बाद रामब्लास के किनारे टहलते हुए मैं जान-बूझ कर फ़्राउ फ़्रिएडा के साथ पीछे रह गया ताकि दूसरों के कानों की पहुँच से दूर रह कर हम अपनी पुरानी यादों को ताजा कर सकें। उसने मुझे बताया कि ऑस्ट्रिया में उसने अपनी संपत्ति बेच दी है और पुर्तगाल में ओपोरटो में एक घर में शांत जीवन बिता रही है। उसने पहाड़ी पर स्थित अपने घर को एक बनावटी किले के रूप में वर्णित किया जहाँ समुद्र के पार अमेरिका दीखता था। हालाँकि उसने ऐसा कहा नहीं, लेकिन उसकी बातचीत से स्पष्ट हुआ कि स्वप्न-दर-स्वप्न उसने वियेना के अपने संरक्षक की सारी जायदाद हड़प ली थी। इससे मुझे कोई आश्चर्य नहीं हुआ क्योंकि मैं सदा से सोचता था कि स्वप्न उसके जीवित रहने की योजना से अधिक कुछ नहीं हैं। और मैंने उसे यह कह भी दिया।

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वह अपनी अत्याकर्षक हँसी हँसी, “तुम सदा के निर्लज्ज हो,” उसने कहा। इससे अधिक उसने कुछ और नहीं कहा, क्योंकि झुंड के सब लोग नेरुदा के इंतजार में रुक गए थे, जो रामब्ला-द-लोस पजारोस के किनारे तोतों से चिली की चालू बोली में संवाद कर रहे थे। जब हमने दोबारा अपनी बातचीत का सिरा पकड़ा, फ़्राउ फ़्रिएडा ने विषयांतर कर दिया।

“हाँ,” उसने कहा, “अब तुम वियेना लौट सकते हो।” तभी मुझे भान हुआ कि हमारी पहली मुलाकात को तेरह वर्ष बीत चुके हैं।

“तुम्हारे स्वप्न गलत हों तब भी मैं कभी वापस नहीं जाऊँगा,” मैंने उससे कहा। “अगर कहीं… “

दोपहर की झपकी के लिए हमने उसे और नेरुदा को तीन बजे छोड़ा। एक तरह से जापानी चाय समारोह की स्मृति जगाने वाली विधिवत रस्मी तैयारी के बाद नेरुदा ने हमारे घर में झपकी ली। कुछ खिड़कियाँ खोलनी पड़ीं और कुछ को बंद करना पड़ा ताकि उपयुक्त मात्रा में गर्माहट पाई जा सके। साथ ही चरम नीरवता के साथ खास कोण से खास दिशा से खास प्रकार के प्रकाश की व्यवस्था की गई। नेरुदा तुरंत सो गए और दस मिनट बाद – जब हमें आशा नहीं होती है और जैसे बच्चे उठते हैं – वे जाग गए। गाल पर तकिए के मोनोग्राम की छाप लिए हुए बिल्कुल तरोजाता वे बैठक में आए।

“मैंने उस स्त्री के बारे में स्वप्न देखा जो स्वप्न देखती है,” उन्होंने कहा।

मटिल्ड चाहती थीं कि वे अपने स्वप्न के बारे में बताएँ।

“मैंने स्वप्न में देखा कि वह मेरे बारे में स्वप्न देख रही है,” वे बोले।

“यह सीधे बोर्खेस से है,” मैंने कहा। उन्होंने निराशा के साथ मुझे देखा। “क्या वह लिखा चुका है?”

“अगर अभी तक उसने नहीं लिखा है तो किसी वक्त लिखेगा,” मैंने कहा। “यह उसकी एक और भूलभुलैय्या होगी।”

शाम को छ बजे जहाज पर सवार होते समय नेरुदा ने हमसे विदा ली और एक कोने की टेबल पर बैठ कर हरी रोशनाई से त्वरित गति से काव्य लिखने लगे। हरी रोशनाई जिसका प्रयोग वे अपनी पुस्तक का इमला बोलते समय फूलों, मछलियों और पक्षियों को चित्रित करने के लिए करते थे। जहाज खुलने की पहली पुकार पर हमने फ़्राउ फ़्रिएडा को ढूँढ़ा और जब हम बिना विदा लिए ही निकल रहे थे, हमने उसे टूरिस्ट डेक पर पाया। उसने भी झपकी ली थी।

“मैंने कवि के बारे में स्वप्न देखा,” उसने कहा।

अचंभे से मैंने उसे उसके स्वप्न के विषय में बताने को कहा।

“मैंने स्वप्न में देखा कि वे मेरे विषय में स्वप्न देख रहे हैं,” उसने कहा।

मेरी अचरज भरी दृष्टि ने उसे विचलित कर दिया।

“तुम क्या अपेक्षा करते हो? मेरे इतने स्वप्नों के बीच कभी कदा एक चूक का असली जीवन से कुछ लेना-देना नहीं है।”

मैंने उसे दोबारा कभी नहीं देखा, न ही उसके बारे में सोचा, जब तक मैंने हवाना रिवियेरा की दुर्घटना में मरने वाली स्त्री की सर्पाकार अँगूठी के बारे में नहीं सुना। कुछ महीनों बाद जब मैं पुर्तगाली राजदूत से एक डिप्लोमैटिक रिसेप्शन में मिला तो मैं अपनी प्रश्न पूछने की लालसा को दबा न सका। राजदूत ने बड़े उत्साह और प्रशंसा के साथ उसकी बात की। “तुम सोच भी नहीं सकते कि वह कितनी विशिष्ट थी,” उसने कहा। “तुम अवश्य उस पर एक कहानी लिखने को मजबूर हो जाते।” मुझे अंतिम निष्कर्ष तक पहुँचने में सहायता देने वाले ने बिना किसी सुराग के कहा। वह उसी लहजे में लगातार आश्चर्यजनक विस्तार से बोलता गया।

अंत में मैंने पूछा, “पक्के तौर पर वह करती क्या थी?”

“कुछ नहीं,” वह बोला। फिर एक प्रकार की निर्ममता के साथ उसने कहा – “वह स्वप्न देखती थी।”

(एडिथ ग्रोसमैन के अँग्रेजी अनुवाद से)

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