सपनों के मुताबिक
सपनों के मुताबिक

हम नहीं चाहेंगे
कि सौ साल बाद
जब हम खोलें तुम्हारी किताब
तो निकले उसमें से
कोई सूखा हुआ फूल
कोई मरी हुई तितली
हम चाहेंगे
दुनिया हो तुम्हारे सपनों के मुताबिक।

See also  बचपन की कविता | मंगलेश डबराल

Leave a comment

Leave a Reply