सपनों के मुताबिक
हम नहीं चाहेंगेकि सौ साल बादजब हम खोलें तुम्हारी किताबतो निकले उसमें सेकोई सूखा हुआ फूलकोई मरी हुई तितलीहम चाहेंगेदुनिया हो तुम्हारे सपनों के मुताबिक।
हम नहीं चाहेंगेकि सौ साल बादजब हम खोलें तुम्हारी किताबतो निकले उसमें सेकोई सूखा हुआ फूलकोई मरी हुई तितलीहम चाहेंगेदुनिया हो तुम्हारे सपनों के मुताबिक।
शोकसभा मेंअचानक खिलखिला कर हँसने लगा बच्चासन्नाटे में आ गए माँ-बाप कैसे समझाते बच्चे कोहँसना गंदी बात बच्चा आ गया बीच की खुली जगह मेंमाँ-बाप की गिरफ्त से छूटकरफेंक के मारी लात हवा मेंएक झटके में झाड़ दिया सारा शोक कैसे हो सकती है हँसना गंदी बातभले ही मर गया हो कोई।
देखने में सपनाऔर जीने में पहाड़ जैसीमरे हुए समुद्रों की हड्डियाँ फैली हैंकंधे से उतरती हैं चींटियों की कतारेंलोग बैठे हैं फौजी गाड़ियों मेंअपनी दुनिया से दूरसूखे हुए लोगधरती के हाथ-पैर बाँधने के लिएऊबी हुई सतर्क आँखेंएक ही कुनबे के लोग खड़े हैंअलग वर्दियों में आमने-सामनेऊपर आसमान का नीला रंगजहाँ नहीं हैं काँटे के तार … Read more
उदासी रास्तों के साथ दूर तक जाती हैउन लोगों तक जो कविताएँ नहीं लिखते आसमान में किस्मत के सितारे चमक रहे हैंदुनिया के सभी लोगों पर एक बराबर एक पीपल का पेड़ खड़ा है चुपचापसारे गाँव की कहानियाँ अपने नीचे समेटे थके लोग जब रात को सो जाते हैंएक बच्चा निकलता है गाँव से आ … Read more
चाकू की तरह काटती है रेलगाड़ीसर्वोच्च न्यायालयविश्व स्वास्थ्य संगठन का क्षेत्रीय दफ्तरझोंपड़पट्टीटाइम्स ऑफ इंडियाप्रगति मैदानअलीगढ़, भोपाल, बंबई, कन्याकुमारीवाराणसी, कलकत्ताबीच में गरीबी, स्वतंत्रता और जनतंत्र के अनंत विस्तार धान के खेतगेहूँ और ऊसर के खेतताल-तलैया, पोखर, कारखानेसागर, पेड़, पहाड़, पुल, नदी, बिजली के ताररिश्ते ही रिश्तेअपने बक्से अपने पेटों में छुपाएएक-दूसरे से डरे हुए लोगबाहर मानवता … Read more
जमीन में गहरी अड़ी है जिसकी परंपराऔर छतरी की तरह फैली है जिसकी कोशिशउलझा है जो धरती और आसमान के बीचकार्बनिक रसायन की गुत्थियों में बैंजीन-चक्र की तरहजड़ बनकर फिर जमीन पकड़ते हैं जिसके तनेसदियों से गाँव के बाहर जुगाली करता पिता-सा डायनोसारजिसकी छाती पर बैठे हैं मकड़ी, बंदर और गिलहरियाँऔर जो चीटीं रेंगती है … Read more
बुरे दिनदिमाग से निकलकरदिल में चुभते हैंमरे हुए चूहे की गंध जैसे रहते हैं कमरे मेंसिटी बस से उतरते हैं शाम को हमारे साथमकानों की खिड़कियों से झाँकते हैंपेड़ों पर बैठकर रोते हैं रात को एक दिन अचानक हमसे पूछते हैंकितने दिनों से खुलकर हँसे नहीं तुम लोग बुरे दिन चले जाते हैंहम रहते हैं।
मेरे कमरे की एक खिड़की से पहाड़ों की हवा आती हैदूसरी से समुद्रों कीआसमान की तरफ खुलता है दरवाजानीले फूलों वाले कुछ पौधे उगे हैं कमरे मेंआधी रात को मैं दरवाजा खोलता हूँटूटकर गिरते हैं तारेऔर कुछ पौधे उगते हैं वहाँ सेनीले फूल टिमटिमाते हैं आधी रात कोमैंने कुछ बीज इकट्ठे कर रखे हैं इन … Read more
बच्चा ऊपर हवाई जहाज की तरफ इशारा करता हैपिता की उँगली पकड़ेगर्म सड़क पर नंगे पाँव चलते हुएपिता को फुर्सत नहींहवाई जहाज के बारे में सोचने कीहवाई जहाज निकल जाता हैबच्चा इशारा करता है उस तरफ।
पकी हुई फसल का रंगसोने जैसा नहीं होताउसका रंग धूप जैसा होता है पहाड़ काटकरछोटी-छोटी सीढ़ियों पर दाने उगाए हैं आदमी नेउसके बच्चों की तरह पत्थरों से पैदा हुई हैं खुशियाँलोहे ने सूरज से धूप खुरची है आदमी के लिएपकी हुई फसल का रंग लोहे जैसा होता है सूरज जब अगली दुनिया को रोशनी देने … Read more