राखी बाँधकर लौटती हुई बहन
राखी बाँधकर लौटती हुई बहन

रेलगाड़ी के चलते ही
फूल बूटे वाले सुनहरे पारदर्शी
पेपर में लिपटा तोहफा
खोलती है मायके से लौटती बहन
अंदर है जरी की पट्टीदार रेशमी साड़ी
जिस पर अपनी कमजोर उँगलियाँ फिराते हुए
इतरा रही है
साड़ी की फीरोजी रंगत
नम आँखों में तिर रही है
राखी बाँधकर बहन
दिल्ली से लौट रही है
अपने शहर सहारनपुर !

कितना मान सम्मान देते हैं उसे
कह रहे थे रुकने को
नहीं रुकी
इतने बरसों बाद
जाने क्यों पैबंद सा लगता है अपना आप वहाँ !
इसी आलीशान कोठी में बीता है बचपन
साँप सीढ़ी के खेल में हारती थी वह
हर बार जीतता था भाई
और भाई को फुदकते देख
अपनी हार पर भी जश्न मनाती
उसके गालों पर चिकोटियाँ काटती
रूठने का अभिनय करती !

इसी कोठी की देहरी से
अपने माल असबाब के साथ
विदा हुई एक दिन
भाई बिलख बिलख कर रोया

See also  पौधे उगते रहेंगे

इसी कोठी के सबसे बड़े कमरे में
पिता को अचानक दिल का दौरा पड़ा
और माँ बेचारी सी
अपने लहीम शहीम पति को जाते देखती रही

पिता नहीं लिख पाए अपनी वसीयत
नहीं देख पाए
कि दामाद भी उसी साल हादसे का शिकार हो गया
और बेटी अकेली रह गई

इसी भाई ने की दौड़ धूप
बैठाए वकील
दिलाई एक छत
जहाँ काट सके अपने बचे खुचे दिन
पर छत के नीचे रहने वाले का पेट भी होता है
यह न भाई को याद रहा न उसे खुद

माँ ने कहा –
इस कोठी में एक हिस्सा तेरा भी है
तू उस हिस्से में रह लेना
भाई ने आँखें तरेरीं
भाभी ने मुँह सिकोड़ लिया

वकील ने इधर नोटिस के कागज तैयार किए
और खबर उधर तैरती जा पहुँची
बस, उस एक साल भाई ने
न अपनी बेटी की शादी पर बुलाया न राखी पर आने की इजाजत दी

See also  बसंत मनमाना | माखनलाल चतुर्वेदी

उसने न माँ की सुनीं
न वकील की !
साँप सीढ़ी का खेल
नहीं खेलना उसे भाई के साथ
और नोटिस के चार टुकड़े
पानी में बहा दिए
तब से वहीं है
अपने शहर सहारनपुर !
उसने कहा – नहीं चाहिए मुझे खैरात
मैं जहाँ हूँ, वहीं भली !
अपने रोटी पानी के जुगाड़ में
बच्चों के स्कूल में अपने पैर जमा लिए !

अब तो वह अपना एक कमरा भी कोठी सा लगता है
बच्चे खिलखिलाते आते-जाते हैं
कॉपी किताबें छोड़ जाते हैं
जिन्हें सहेजने में दिन निकल जाता है

भाई ने अगले साल राखी पर आने का न्यौता दिया
बच्चे याद करते है बुआ को
और अब हर साल बड़े चाव से जाती है
उसके बच्चों के लिए
अपनी औकात भर उपहार लेकर
जितना ले जाती है
उससे कहीं ज्यादा वे उसकी झोली में भर देते हैं !

See also  भूख | नरेश सक्सेना

अब यह सिल्क की साड़ी ही
तीन चार हजार से कम तो क्या होगी
वह एहतियात से तह लगा देती है
अपनी दूसरी भतीजी की शादी में यही पहनेगी

कितना अच्छा है राखी का त्यौहार कोठी के एक हिस्से से क्या वह सुख मिलता
जो मिलता है भाई की कलाई पर राखी बाँधकर ?
मायके का दरवाजा खुला रहने का अर्थ क्या होता है यह बात सिर्फ वह बहन जानती है
जो उम्र के इस पड़ाव पर भी इतनी भोली है
कि चुका कर इसकी बहुत बड़ी कीमत अपने को बड़ा मानती है !

Leave a comment

Leave a Reply