पेड़ों पर हैं मछलियाँ | प्रतिभा चौहान
पेड़ों पर हैं मछलियाँ | प्रतिभा चौहान

पेड़ों पर हैं मछलियाँ | प्रतिभा चौहान

पेड़ों पर हैं मछलियाँ | प्रतिभा चौहान

पेड़ों पर हैं मछलियाँ 
क्योंकि हमने छीन लिए हैं उनके समुद्र 
हमने भेद दिए हैं, 
उनकी आँखों में तीर 
हम ने छीन ली है उन की सिसकियाँ 
जिससे वह अपने दर्द कहा करती थीं…

See also  गीता | आस्तिक वाजपेयी

पेड़ों की पत्तियाँ हरी नहीं हैं 
बादलों की रंगोली 
अब-दृश्य मात्र 
जिनसे बनते हैं सिर्फ रंगीन चित्र 
वे नहीं भर सकते तुम्हारी दरारों में नमी 
क्योंकि तुमने भेज दिए हैं 
सीने में जख्म 
जो भर चुके हैं दर्द के भारी बोझ से 
अब वे बरसते नहीं 
फट पड़ते है।

Leave a comment

Leave a Reply