धीरे-धीरे फिर उसी सूखी पगडंडी पर
उगने लगी है हरी हरी ऊनी घास
छोड़ दिया था जिसको सबने
अकेला लावारिस बेसहारा सा
आज उसी सूखी पगडंडी पर
कुछ नन्हें नन्हों ने फेरा था हाथ
उनके पैरों तले उसी घास ने गुदगुदा कर
किलकारियों से भर ली थी सूनी डगर
सबकी भूली-बिसरी या छोड़ दी गई ये राह
फिर एक बार जाग कर नई हरी पोशाक पहन
खेल रही थी नन्हीं-नन्हीं मासूम कलियों के साथ
सूखी पगडंडी खो गई थी अब कहीं
उसने अपने सूखेपन को भी भुला दिया था
अब खिले हुए सतरंगे फूलों से सजी
वो जमीन पर लहराता इंद्रधनुष बन गई थी
ठीक उस बेसहारा बेटी की तरह जिसे
अब प्यार करने वाली माँ मिल गई हो