नींदें

नींद की छतरियाँ
कई रंगों और नाप की हैं।
मुझे तो वह नींद सबसे पसंद है
जो एक अजीब हल्के गरु उतार में
धप से उतरती है
पेड़ से सूखकर गिरते आकस्मिक नारियल की तरह
एक निर्जन में।
या फिर वह नींद
जो गिलहरी की तरह छोटी चंचल और फुर्तीली है।
या फिर वह
जो कनटोप की तरह फिट हो जाती है
पूरे सर में।

See also  कविता में | पंकज चौधरी

एक और नींद है
कहीं समुद्री हवाओं के आर्द्र परदे में
पालदार नाव का मस्तूल थामे
इधर को दौड़ी चली आती
इकलौती
मस्त अधेड़ मछेरिन।

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