नहीं लौटता कुछ फिर भी | प्रतिभा कटियारी
नहीं लौटता कुछ फिर भी | प्रतिभा कटियारी

नहीं लौटता कुछ फिर भी | प्रतिभा कटियारी

नहीं लौटता कुछ फिर भी | प्रतिभा कटियारी

हालाँकि लौटाए जाने पर भी
सब कुछ लौटता नहीं फिर भी
उधार की चीजें लौटाया जाना जरूरी है
नहीं लौटता वो रिश्ता
जो चीजों की उधारी के दरमियान
कायम हो जाता है
हमारी जरूरतों से
पढ़ी हुई किताबों के लौटाए जाने पर
नहीं लौटते पढ़े हुए किस्से
किताब के पन्नों पर चिपकी,
मुड़ी ठहरी हमारी नजर
हमारी उँगलियों की छुअन…
देर तक उसका सीने पे पड़े रहना
किताब के पन्नों में भर गई हमारी ठंडी साँसें
माँगी गई स्कूटर लौटाए जाने पर
वापस नहीं लौटता वो सफर
जो उधारी के दौरान तय किया गया हो
उधार के स्कूटर पर बैठकर मिलने जाना महबूबा से
उसका सहमकर बैठना पीछे वाली सीट पर
रास्ते में सफर के दौरान उग आए नन्हें स्पर्श
और रक्ताभ चेहरा, सनसनाहट
नहीं लौटती स्कूटर लौटाने के साथ…
महँगे चाय के कप लौट जाते हैं पड़ोसियों के
लेकिन नहीं लौटती उन कपों को ट्रे में रखकर
लड़केवालों के सामने ले जाने की पीड़ा
और भीतर ही भीतर टूटना कुछ बेआवाज
लौटाए गए म्यूजिक एलबम के साथ
नहीं लौटता उम्र भर का वो रिश्ता
जो सुनने के दौरान कायम हुआ
उस संगीत से
लौटाए जाने पर नहीं लौटते वो आँसू
जो उधार के सुख से जन्मे थे
फिर भी उधार ली हुई चीजों का
लौटाया जाना जरूरी है…

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