दरजिन रात | प्रतिभा कटियारी दरजिन रात | प्रतिभा कटियारी रात दर्जिन थी कोईसीती थी दिन के पैरहन के फटे हिस्से…वो जाने कैसा लम्हा था धागे उलझ गए सारेसुइयाँ भी गिरकर खो गईंदिन का लिबासउधड़ा ही रहेगा अब…