उमेश चौहान
उमेश चौहान

म्वार देसवा हवै आजाद,
हमार कोउ का करिहै ।

कालेज ते चार-पाँच डिग्री बटोरिबै,
लड़िबै चुनाव, याक कुरसी पकरिबै,
कुरसी पकरि जन-सेवक कहइबै,
पेट्रोल-पंपन के परमिट बटइबै,
खाली गुल्लक करब आबाद,
हमार कोउ का करिहै ॥

गांधी रटबु रोजु आँधी मचइबै,
किरिया करबु गाल झूठै बजइबै,
दंगा मचइबै, फसाद रचइबै,
वोटन की बेरिया लासा लगइबै,
फिरि बनि जइबै छाती का दादु,
हमार कोउ का करिहै ॥

See also  तुम्हारा प्यार | मंगलेश डबराल

संसद मा बैठि रोजु हल्ला मचइबै,
देसी विदेसी मा भासनु सुनइबै,
घर मा कोऊ स्मगलिंग करिहै,
कोऊ डकैतन ते रिश्ता सँवरिहै,
धारि खद्दर बनब नाबाद,
हमार कोउ का करिहै ॥

बहुरी समाजवाद जब हम बोलइबै,
आँखिन मा धूरि झोंकि दारिद छिपइबै,
भारत उठी जब-जब हम उठइबै,
भारत गिरी जब-जब हम गिरइबै,
कोऊ अभिरी करब मुरदाद,
हमार कोउ का करिहै ॥

Leave a comment

Leave a Reply