मन न हुए मन से | देवेंद्र कुमार बंगाली
मन न हुए मन से | देवेंद्र कुमार बंगाली

मन न हुए मन से | देवेंद्र कुमार बंगाली

मन न हुए मन से | देवेंद्र कुमार बंगाली

मन न हुए मन से
हर क्षण कटते रहे किसी छन से।

तुमसे-उनसे
मेरी निस्बत
क्या-क्या बात हुई।
अगर नहीं, तो
फिर यह ऐसा क्यों?
दिन की गरमी
रातों की ठंडक
चायों की तासीर
समाप्त हुई
एक रोज पूछा निज दर्पन से।

मन न हुए मन से
हर क्षण कटते रहे किसी छन से।

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