लिखावट | नरेंद्र जैन
लिखावट | नरेंद्र जैन

लिखावट | नरेंद्र जैन

लिखावट | नरेंद्र जैन

जब मैं पच्चीस साल का था 
तब मेरी हैंडरायटिंग ठीक-ठाक थी 
अक्षर कँपकँपाते नहीं थे 
हालाँकि उस दौर में मंगलेश डबराल 
की लिखावट देख ईर्ष्या हो आती थी मुझे 
और अजीत चौधरी छोटे छोटे अन्न के दानों जैसे 
अक्षर लिखा करता था 
तब एक लय हुआ करती थी नीलाभ की लिखावट में 
और विष्णु नागर जल्दबाजी में लिखते थे 
जैसे शब्दों को ठेल रहे हो बेफिक्री से 
वैसे असद ज़ैदी की 
हेंडरायटिंग भी उनके लिखे हुए को पढ़ने के लिए 
ललचाती रही है 
एक तथ्य ये भी है कि औरत की 
भद्दी लिखावट के कारण 
दूर होता गया उससे मैं

लिखावट से चेहरे मोहरे या 
व्यक्तित्व की पड़ताल नहीं होती मुझसे 
वैसे दिवंगत मित्र वेणुगोपाल की लिखावट 
बेहद खराब थी 
लेकिन उनके विचार ज्यादा मानी रखा करते थे

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