कविता का अनुवाद करते हुए | रति सक्सेना
कविता का अनुवाद करते हुए | रति सक्सेना

कविता का अनुवाद करते हुए | रति सक्सेना

कविता का अनुवाद करते हुए | रति सक्सेना

मानसून की पहली बरसात सा
छन छन बरसते हुए
पहले पहल तप्त शब्दों को
इतना ठंडाना होता है
कि अर्थों तक पहुँचते पहुँचते
तलवे ना कड़क जाएँ

पूरी ताकत बटोर
मानसूनी झड़ी की तरह
लय और ताल छोड़
इस तरह से तर बतर करना होता है
शब्दों की त्वचा में बैठे अर्थों को कि वे
सामने आ जाएँ खुद ब खुद

कुछ इंतजार, नन्हीं सी उष्म रेख
अर्थ सिर उठा लेते हैं
दूभर शाब्दिक धरती से

अब समय है खरपतवार बीनने का
अर्थो के अर्थ समझने का
और शनै शनैः कविता को अपना बनाने का

इसके बाद जो उपजता है
वह मेरी अपनी कविता होती है

अनुवाद कोई पकौड़ी तो नहीं कि
अपने शब्दों के बेसन में लपेट
नमक मिरची खटाई समेट
भाषा की कढ़ाई में तल डालूँ

अनुवाद हलुवा भी नहीं कि फीकी
सूजी को घी चीनी से तर करके
मेवा के साथ परोसूँ

अनुवाद सत्तू है
जहाँ शब्दों को दूसरी भाषा के भट्टी में
गुनगुना सेंका इस तरह जाता है कि
वह अपनी खुशबू को
अपने आप खोल दे

फिर गरीब के कटोरे में
पानी, नमक और हरी मिर्च के साथ
सातों पकवानों का स्वाद दे दे

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