काँटो भरी बेल में
काँटो भरी बेल में

उसने अपनी भाषा को किया नरम,
दूब सा –

उसने अपनी हथेली को किया
फूल सा –

उसने छुपा लिया अपने ही भीतर
अपना सारा असला –
वह आँखों में लाई आँज कर
एक प्रतिसंसार गहरा –

वह स्त्री थी प्रेम में,
खिल रही थी काँटो भरी बेल में।

See also  तुम्हारी खोज में | भारती सिंह

Leave a comment

Leave a Reply