काला पत्थर | हरिओम राजोरिया
काला पत्थर | हरिओम राजोरिया

काला पत्थर | हरिओम राजोरिया

काला पत्थर | हरिओम राजोरिया

एक सूरत ढल गई काले पत्थर में
गल्ला मंडी चौराहे पर आकर
जम गई एक काली मूरत
अब अनाज से लदी बैलगाड़ियाँ
चौराहे को उनके पिता के नाम से जानेंगी

फूलों के हारों से लदे कैलाशवासी पिता
तनकर बैठे हैं नक्कासीदार सिंहासन पर
देहात से आए किसान
जैसे काँख में दबाए रहते हैं फटी छाता
पिता की काँख में भी
वैसी ही दबी है पत्थर की तलवार
दूसरे हाथ में लिए हैं काले पत्थर का गुलाब
काले पत्थर में दमकता रोबीला चेहरा
काले होंठों पर फैली रहस्यमयी काली मुस्कान
पर कुआँर की इस चटकती धूप में
काले माथे पर नहीं हैं
काले पसीने की महीन काली बूँदें

See also  लोकतंत्र के कान्हा | जय चक्रवर्ती

अपने दाहिने हाथ से वे
हटा रहे हैं रेशम की पीली चादर
नमन करते हुए पिता की स्मृति को
अनेक चेहरे हैं उनके आसपास
पर वे दूर कहीं
सूने आसमान की तरफ देखते हैं
पास ही देशी दारू की कलाली है
जहाँ से लौट रहे हैं झुकी कमर वाले हम्माल

See also  मैना | गोरख पाण्डेय

अपने भीतर ही डूबे हुए चुपचाप
हम्माल जा रहे हैं मंडी की ओर
पर वे सोचते जरूर होंगे
ये गोरे-भूरे साफ सुथरे आदमी
काले पत्थरों में ही क्यों ढलते हैं।

Leave a comment

Leave a Reply