कितने आँसुओं सेभीगी हैयह हँसी पी करकितना अपमानकितना अँधेराठेल करफूटी हैयह दूधिया उजास हँस रहा आदमीहताशा को धकियालग रहाकितना पूरंपूरमोहित हूँ भरपूरमैं तो –जीवन की इस कला पर।