जलियाँ वाला की बेदी | माखनलाल चतुर्वेदी

जलियाँ वाला की बेदी | माखनलाल चतुर्वेदी

नहीं लिया हथियार हाथ में, नहीं किया कोई प्रतिकार, 
‘अत्याचार न होने देंगे’ बस इतनी ही थी मनुहार, 
सत्याग्रह के सैनिक थे ये, सब सह कर रह कर उपवास, 
वास बंदियों मे स्वीकृत था, हृदय-देश पर था विश्वास,

मुरझा तन था, निश्चल मन था, 
जीवन ही केवल धन था, 
मुसलमान हिंदूपन छोड़ा, 
बस निर्मल अपनापन था।

मंदिर में था चाँद चमकता, मसजिद में मुरली की तान, 
मक्का हो चाहे वृंदावन होते आपस में कुर्बान, 
सूखी रोटी दोनों खाते, पीते थे रावी का जल, 
मानो मल धोने को पाया, उसने अहा उसी दिन बल,

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गुरु गोविंद तुम्हारे बच्चे, 
अब भी तन चुनवाते हैं, 
पथ से विचलित न हों, मुदित, 
गोली से मारे जाते हैं।

गली-गली में अली-अली की गूँज मचाते हिल-मिलकर, 
मारे जाते, कर न उठाते, हृदय चढ़ाते खिल-खिल कर, 
कहो करें क्या, बैठे हैं हम, सुनें मस्त आवाजों को, 
धो लेवें रावी के जल से, हम इन ताजे घावों को।

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रामचंद्र मुखचंद्र तुम्हारा, 
घातक से कब कुम्हलाया? 
तुमको मारा नहीं वीर, 
अपने को उसने मरवाया।

जाओ, जाओ, जाओ प्रभु को, पहुँचाओ स्वदेश-संदेश, 
“गोली से मारे जाते हैं भारतवासी, हे सर्वेश”! 
रामचंद्र तुम कर्मचंद्र सुत बनकर आ जाना सानंद, 
जिससे माता के संकट के बंधन तोड़ सको स्वच्छंद।

चिंता है होवे न कलंकित, 
हिंदू धर्म, पाक इसलाम, 
गावें दोनों सुध-बुध खोकर, 
या अल्ला, जय जय घनश्याम।

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स्वागत है सब जगतीतल का, उसके अत्याचारों का, 
अपनापन रख कर स्वागत है, उसकी दुर्बल मारों का, 
हिंदू-मुसलिम-ऐक्य बनाया स्वागत उन उपहारों का, 
पर मिटने के दिवस रूप धर आवेंगे त्योहारों का।

गोली को सह जाओ, जाओ – 
प्रिय अब्दुल करीम जाओ, 
अपनी बीती हुई खुदा तक, 
अपने बन कर पहुँचाओ।