जहर घुलने लगा है | रमा सिंह
जहर घुलने लगा है | रमा सिंह

जहर घुलने लगा है | रमा सिंह

जहर घुलने लगा है | रमा सिंह

जिंदगी देती रही थीं जो अभी तक
उन हवाओं में जहर घुलने लगा है।

जो लुभाती थीं हमें आँखें नशीली
सर्पदंशों से अधिक लगती विषैली
आचरण, सद्भाव की बातें बहुत हैं
भावनाओं की डगर अब है नुकीली
खिलखिलाकर गुदगुदाती थी जगत को
उन अदाओं में जहर घुलने लगा है।

पहले काँटों में भी हम सब थे सुरक्षित
फूल ही अब फूल को छलने लगे हैं
पहले कुटिया में भी हम रहते थे हँसते
अब महल में रात-दिन जलने लगे हैं
सत्‍य की रंगीनियाँ जिनमें घुली थीं
उन कलाओं में जहर घुलने लगा है।

साँस ही अब साँस की दुश्‍मन बनी है
हर तरफ बस कर्ज की ही अलगनी है
भीड़ में सारे सुदामा खो गए हैं
और न कोई भी गुरु संजीवनी है
ज्ञान की बातें जो करती थी सभी से
उन ऋचाओं में जहर घुलने लगा है।

शब्‍द कुछ कहते हैं कुछ कहते हैं चेहरे
हो गए है चेतना के कान बहरे
राम भी रावण से अब लगने लगे हैं
वक्त की सीता करे किससे निहोरे
हर कदम पर राह जो दिखला रही थीं
उन प्रथाओं में जहर घुलने लगा है।

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