कैसी उलटी पवन चले | रमा सिंह
कैसी उलटी पवन चले | रमा सिंह

कैसी उलटी पवन चले | रमा सिंह

कैसी उलटी पवन चले | रमा सिंह

कैसी उलटी पवन चले
काँटे बन कर फूल खिले
अब हम क्‍या बतलाएँ तुमको
होम किया और हाथ जले।

अनगिन गलियाँ हैं जग की
जिनमें तू खो जाएगा
कबिरा का इक तारा फिर
ये ही गीत सुनाएगा
विश्‍वासों के घर में प्राणी
अपना कह कर गए छले।

हमको केवल दर्द मिला
दुनिया से सौगातों में
उजियारा की कैद हुआ
काली-काली रातों में
सुबह सुहानी ऐसी लगती
जैसे कोई शाम ढले।

जिसने जीवन दिया वही अब
विष का प्‍याला लिए खड़ी
हर धड़कन के पाँवों में
किसी दर्द का शूल गड़ा
जिनको हमने सागर समझा
वो निकले छिछले-छिछले।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *