अंदर कभी समुद्र-मंथन चलता है,
कभी ज्वालामुखी फूटता है,
कभी दावाग्नि लगती है,
कभी बर्फ जमती है,
कभी बरसात होती है,
कभी आँधी-तूफान चलता है,
सब कुछ बाहर से क्यों नहीं गुजर जाता?
जड़ें तो न हिलतीं
पेड़ की।
अंदर कभी समुद्र-मंथन चलता है,
कभी ज्वालामुखी फूटता है,
कभी दावाग्नि लगती है,
कभी बर्फ जमती है,
कभी बरसात होती है,
कभी आँधी-तूफान चलता है,
सब कुछ बाहर से क्यों नहीं गुजर जाता?
जड़ें तो न हिलतीं
पेड़ की।
गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।बेचा है ईमान धरम तब, घर में शानो शौकत आई है।संतोष बेच तृष्णा खरीदी, देखो कितनी मंहगाई है।। बीघा बेच स्कवायर फीट, खरीदा ये कैसी सौदाई है।संयुक्त परिवार के वट वृक्ष से, टूटी ये पीढ़ी मुरझाई है।।रिश्तों में है भरी…
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