इक्कीसवी शताब्दी में हाथी
इक्कीसवी शताब्दी में हाथी

जुलूसों के पेट भरने के काम
आते हैं हाथी
बाकी दिन जंगल की हरियाली
और महावत की कृपा पर
निर्भर रहते हैं

शहर में बच्चों के लिए कौतुक
व्यवसायियों के लिए कीमती दाँत हैं

वे इतिहास के किसी प्रागैतिहासिक गुत्थी की
याद दिलाते हैं

हाथी दुर्लभ होते जा रहे हैं
उन्हें देखते ही खुशी होती है
मन चिंघाड़ने लगता है

वे बचपन की अविस्मणीय घटना की तरह
समय के अँधेरे अस्तबल में
छिपे हुए हैं

इक्कीसवीं शताब्दी में क्या वे
बचे रहेंगे ?
या उनके सूँड़ झड़ जाएँगे ?
या इस नाम का जानवर नहीं
बचा रहेगा पृथ्वी पर
या वे चिड़ियाघर की वस्तु बन
जाएँगे ?

बताइए माननीय प्रधानमंत्री जी

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *