इच्छा | अरुण कमल इच्छा | अरुण कमल मैं जब उठूँ तो भादों होपूरा चंद्रमा उगा हो ताड़ के फल सागंगा भरी हों धरती के बराबरखेत धान से धधाएऔर हवा में तीज त्यौहार की गमक इतना भरा हो संसारकि जब मैं उठूँ तो चींटी भर जगह भीखाली न हो।