हृदय ढूँढ़ता है प्रेम के भूले पासवर्ड | नीरजा हेमेंद्र
हृदय ढूँढ़ता है प्रेम के भूले पासवर्ड | नीरजा हेमेंद्र

हृदय ढूँढ़ता है प्रेम के भूले पासवर्ड | नीरजा हेमेंद्र

हृदय ढूँढ़ता है प्रेम के भूले पासवर्ड | नीरजा हेमेंद्र

सवेरा, सर्द !
सृष्टि कोहरे की चादर लपेट कर
कर रही है विश्राम
नहीं निकलना चाहता
सूरज भी अपने घर से बाहर
होती हैं कुछ संवेदनाएँ
कोहरे में ढकी सृष्टि-सी…
कभी संवेदनहीन हो जाता है
हमारा हृदय
एक खाली मैदान-सा,
नहीं होता है कुछ भी वहाँ
तो कभी कमरे सदृश्य हो जाता है… हृदय
अव्यवस्थित होती चीजों को व्यवस्थित करने में
व्यतीत हो जाता है
दिन का अधिकांश
बंद करते हैं हम दरवाजे
घरों के
हृदय के
गोधूलि बेला में
सतरंगी किरणें ले कर सूरज
अकस्मात् निकल आता है
कोहरे को भेद कर
हृदय के बंद दरवाजे की झिर्रियों से
प्रवेश कर जाता है प्रेम
जिसे हम छोड़ आए थे
कोहरे की धनी चादर में प्रातः
शाम के सतरंगी किरणों के प्रकाश में
हृदय ढूँढ़ता है प्रेम के भूले पासवर्ड।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *