समयांतर के मध्य | नीरजा हेमेंद्र
समयांतर के मध्य | नीरजा हेमेंद्र

समयांतर के मध्य | नीरजा हेमेंद्र

समयांतर के मध्य | नीरजा हेमेंद्र

मैं नहीं रेत पर लिखी इबारत 
न ही बारिश की बूँदों से 
नदी की सतह पर 
बनते/फूटते बुलबुले 
मैं पगडंडियों पर उग आई 
बेतरतीब मूँज भी नहीं हूँ 
मेरा होना 
बहुमंजिली भवनों के 
किसी फ्लैट में सहमी-सी 
प्रताड़ना सहने वाली 
अंततः जला देने वाली 
किसी स्त्री तक नहीं 
मैं हूँ नुक्कड़ पर चाय बेच कर 
पूरे परिवार का पेट पालने वाली… अन्नपूर्णा 
फुटपाथ पर बच्चों के 
कपड़े बेचने वाली… ज़किया 
मूँज से कलात्मकता गढ़ने वाली… चंद्रकला 
जो नहीं जानतीं 
स्त्री के अधिकारों की कानूनी परिभाषा 
न पढ़ी हैं वे स्त्री-विमर्श की मोटी किताबें 
प्रताड़ित होने पर बन सकती हैं रेत 
बन सकती हैं नदी 
बन सकती हैं मूँज काटने वाली हँसिया 
मेरा होना है 
साँसों के लिए 
रोटी के लिए 
छत के लिए 
एक मुट्ठी आसमान के लिए 
चाँद के लिए नहीं 
अपितु, छोटे-से तारे के लिए 
संघर्ष करती स्त्री में… 
वार के 
गालियों के प्रतिकार के 
अपनी जमीन 
अपनी सरकार के 
स्त्रियोचित श्रृंगार के अर्थ को 
परिभाषित करती स्त्री में… 
मेरा होना है…

Leave a comment

Leave a Reply