हवस का लोकतंत्र

यह अंतिम है 
और इसी वक़्त है 
परिणति का कोई निर्धारित क्षण नहीं होता

मेरी ज़ुबान भले ही तुम ना समझो 
लेकिन मेरी भूख 
तुमसे संवाद कर सकती है

हमारे सपनों का नीलापन हमारे होने का उजास नहीं 
यह रक्तपायी कुर्सियों के नखदंशों का नक्शा है 
जो सत्ता में सहवास की सड़कों का पता बताता है

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यही अंतिम है 
और इसी वक़्त है

तुम्हारी आत्महत्याएँ प्रवंचना हैं 
दुखी-अपनों से निरर्थक संवाद 
महानायकों के विश्वासघाती चेहरों के 
दर के भोथरेपन से उपजी हुई 
अपनी हताशा का

झंडों के रंग कुछ भी रहें 
सत्ता का रंग वही होता है

कई मुद्दों पर 
सत्ता की गलियों में मतभेद नहीं होता 
बहस नहीं होती – 
यह हमारी हवस का लोकतंत्र है

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