हवा का झोंका | मोहन सगोरिया हवा का झोंका | मोहन सगोरिया हवा का एक झोंका आयाखुल गए कपास के कपाटउड़-उड़ गए बगुले दसों-दिशाओं में हवा का एक ही झोंका आया थाऔर नींद भटक गई अपना रास्ता।