हाँ, याद तुम्हारी आती थी | माखनलाल चतुर्वेदी
हाँ, याद तुम्हारी आती थी | माखनलाल चतुर्वेदी

हाँ, याद तुम्हारी आती थी | माखनलाल चतुर्वेदी

हाँ, याद तुम्हारी आती थी | माखनलाल चतुर्वेदी

हाँ, याद तुम्हारी आती थी, 
हाँ, याद तुम्हारी भाती थी, 
एक तूली थी, जो पुतली पर 
तसवीर सी खींचे जाती थी;

कुछ दुख सी जी में उठती थी, 
मैं सुख सी जी में उठती थी, 
जब तुम न दिखाई देते थे 
मनसूबे फीके होते थे;

पर ओ, प्रहर-प्रहर के प्रहरी, 
ओ तुम, लहर-लहर के लहरी, 
साँसत करते साँस-साँस के 
मैंने तुमको नहीं पुकारा!

तुम पत्ती-पत्ती पर लहरे, 
तुम कली-कली में चटख पड़े, 
तुम फूलों-फूलों पर महके, 
तुम फलों-फलों में लटक पड़े,

जी के झुरमुट से झाँक उठे, 
मैंने मति का आँचल खींचा, 
मुझको ये सब स्वीकार हुए, 
आँखें ऊँची, मस्तक नीचा;

पर ओ राह-राह के राही, 
छू मत ले तेरी छल-छाँही, 
चीख पड़ी मैं यह सच है, पर 
मैंने तुमको नहीं पुकारा!

तुम जाने कुछ सोच रहे थे, 
उस दिन आँसू पोंछ रहे थे, 
अर्पण की हव दरस लालसा 
मानो स्वयं दबोच रहे थे,

अनचाही चाहों से लूटी, 
मैं इकली, बेलाख, कलूटी 
कसकर बाँधी आनें टूटीं, 
दिखें, अधूरी तानें टूटीं,

पर जो छंद-छंद के छलिया 
ओ तुम, बंद-बंद के बंदी, 
सौ-सौ सौगंधों के साथी 
मैंने तुमको नहीं पुकारा!

तुम धक-धक पर नाच रहे हो, 
साँस-साँस को जाँच रहे हो, 
कितनी अलःसुबह उठती हूँ, 
तुम आँखों पर चू पड़ते हो;

छिपते हो, व्याकुल होती हूँ, 
गाते हो, मर-मर जाती हूँ, 
तूफानी तसवीर बनें, आँखों 
आए, झर-झर जाती हूँ,

पर ओ खेल-खेल के साथी, 
बैरन नेह-जेल के साथी, 
निज तसवीर मिटा देने में 
आँखों की उँड़ेल के साथी, 
स्मृति के जादू भरे पराजय! 
मैंने तुमको नहीं पुकारा!

जंजीरें हैं, हथकड़ियाँ हैं, 
नेह सुहागिन की लड़ियाँ हैं, 
काले जी के काले साजन 
काले पानी की घड़ियाँ हैं;

मत मेरे सींखचे बन जाओ, 
मत जंजीरों को छुमकाओ, 
मेरे प्रणय-क्षणों में साजन, 
किसने कहा कि चुप-चुप आओ;

मैंने ही आरती सँजोई, 
ले-ले नाम प्रार्थना बोली, 
पर तुम भी जाने कैसे हो, 
मैंने तुमको नहीं पुकारा!

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