हिमालय पर उजाला | माखनलाल चतुर्वेदी
हिमालय पर उजाला | माखनलाल चतुर्वेदी

हिमालय पर उजाला | माखनलाल चतुर्वेदी

हिमालय पर उजाला | माखनलाल चतुर्वेदी

लिपट कर गईं बलवान चाहें, 
घिसी-सी हो गईं निर्माल्य आहें, 
भृकुटियाँ किंतु हैं निज तीर ताने 
हुए जड़ पर सफल कोमल निशाने।

लटें लटकें, भले ही ओठ चूमें, 
पुतलियाँ प्राण पर सौ साँस झूमें। 
यहाँ है किंतु अठखेली नवेली, 
हिमालय के चढ़ी सिर एक बेली।

नगाधिप में हवा कुछ छन रही है, 
नगाधिप में हवा कुछ बन रही है। 
किरन का एक भाला कह रहा है, 
हिमालय पर उजाला हो रहा है।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *