ग्लोबलाइजेशन | ओमा शर्मा
ग्लोबलाइजेशन | ओमा शर्मा

ग्लोबलाइजेशन | ओमा शर्मा – Globalization

ग्लोबलाइजेशन | ओमा शर्मा

डायरीनुमा शैली में चंद कागजों पर दर्ज कुछ दिलचस्प, कुछ रवायती ढंग के ये निरीक्षण, लगता है, कॉलिज में पढ़ती मेरी बेटी की किसी अध्यापिका के रहे होंगे। कॉलिज ने मुझे बिटिया की कक्षाओं में कम होती हाजिरी (जी हाँ, कॉलेज स्तर पर कुछ जगह ऐसा होता है!) के सिलसिले में तलब किया था। मैं थोड़ी देर में पहुँचा था। वहाँ का स्टाफरूम सुनसान हो चुका था। मैं वहाँ के बाथरूम से निवृत्त होकर आया तो दरवाजे के दूसरे तरफ वाली मेज पर एक रजिस्टर के नीचे ये फड़फड़ा रहे थे। कौतूहलवश मैंने उठा लिए और हल्के गुनाह के अहसास के साथ पढ़ भी लिए। अगले रोज स्टाफरूम के नोटिस बोर्ड पर मैंने इन कागजों के अपने पास होने की सूचना अपने मोबाइल नंबर के साथ लिख दी। इस बात को पर्याप्त समय हो गया है मगर किसी ने इस बाबत संपर्क नहीं किया। इसलिए इन्हें यहाँ यूँ सार्वजनिक किए जाने में कोई हर्ज नहीं होना चाहिए। फिर भी, निजता की सुरक्षा की खातिर व्यक्ति, विभाग और कॉलिज के नामों को छुपा लिया गया है। मुख्यतः अंग्रेजी में लिखे मजमून का मैंने अनुवाद-सा किया है और अपनी समझ से उपरोक्त शीर्षक रख दिया है।

ब्रिटनी स्पीयर्स भी अजीब है। समझ नहीं आता है कि इसका पागलपन कहाँ जाके रुकेगा! कभी शराब के नशे में धुत्त होकर ट्रैफिक की ऐसी-तैसी करती है तो कभी पुलिस स्टेशन के भीतर कपड़े उतारकर नाच दिखाने लग जाएगी। केविन फेडरलिन से बच्चों की हिरासत का झगड़ा तो खैर चल ही रहा है। तलाक के बावजूद दोनों के बीच आए दिन जूतम-पैजार हो जाती है। बेचारे केविन को तो हारकर कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा। सत्रह साल की उम्र में तो पट्ठी माँ बन गई थी। छब्बीस की उम्र में अभी तक दो बार तलाक ले चुकी है। दूसरी शादी तो चली ही पचपन घंटे। खिसकी हुई है तभी तो डॉक्टरों ने भी बाइपोलर डिसऑर्डर बताया है। होगा। कोई मानेगा कि यह लड़की कभी जिमनास्टिक्स किया करती थी और इसकी वह एलबम, क्या नाम था, बेबी वन मोर टाइम एक करोड़ से ज्यादा बिकी थी।

टेलैंटेड तो है ही तभी तो ‘टॉक्सिक’ गाने पर ग्रामी इनाम जीत चुकी है। आजकल एक पाकिस्तानी पापराजी फोटोग्राफर अदनान गालिब के साथ घूम-फिर रही है। देखो, कब तक चलता है। अभी कहीं पढ़ा कि इसकी छोटी बहन जो मुश्किल से पंद्रह साल की है, बिन ब्याही माँ बननेवाली है। कहीं इसकी वजह इसके बिगड़ैल माँ-बाप तो नहीं! सुना है, बाप, जेम्स स्पीयर्स, भयंकर पियक्कड़ था और माँ, लिन इरीन, के पता नहीं कितने मर्दों के साथ ताल्लुक थे। एक बार तो वह केविन के साथ ही रँगरलियाँ मनाती पकड़ी गई थी। इन लोगों का कोई हिसाब-किताब है? कोई लिहाज नहीं, कोई रोक-टोक नहीं। थर्ड ईयर में मेरी एक स्टूडेंट है, अलीफिया। उसी की तरह लो-कट जीन्स-जैकेट पहनकर आती है। नकलची कहीं की। ये लोग सोचते हैं हमें कुछ पता नहीं है।

ब्रिटनी के पापराजी आशिक से याद आई टॉम क्रूज और कैटी होम्स की बात। एक पापराजी फोटोग्राफर इन्हें गुमराह कर रहा है, परेशान कर रहा है – कि उसके पास इन दोनों की फूकेट के समुद्रतट पर बिताई छुट्टियों की कुछ चटपटी तस्वीरें हैं। डेटिंग के दौरान की। फोन पर वह आदमी अपना नाम जूल ब्राउन बताता है और कहता है कि सही रकम मिल जाने पर वह उन तस्वीरों को नेगेटिव समेत लौटा देगा। सही रकम के मायने पता है – दस लाख अमेरिकी डॉलर। हालाँकि टॉम और कैटी खूब कमाते हैं पर इतनी बड़ी रकम कोई फालतू में क्यों लुटाएगा। टॉम क्रूज मुझे बड़ा सीधा लगता है। पता नहीं निकोल किडमैन के चक्कर में कैसे आ गया! खैर, तभी दोनों ज्यादा चले भी नहीं। कैटी कितनी स्टनिंग है। दूसरी हीरोइनों की तरह वह फालतू चर्चाओं से बचती है। मगर सिनेमा के धंधे की मजबूरी है।

किडमैन ने इधर कीथ अर्बन को पकड़ लिया है पर मुझे नहीं लगता दोनों की चलेगी। सच या झूठ मगर आजकल वह सबको बताती फिर रही है कि पेट से है। इन लोगों को यह नहीं लगता कि ऐसी पर्सनल चीजें अपने तक ही रखनी चाहिए। हमारे कॉलिज के कॉमर्स विभाग में एक टीचर है डॉली सावंत। घोर साँवली। पता चला बच्चों के बीच उसका नाम है काली सावंत। वह भी बात-बेबात बताती रहती है कि इस बार पीरियड्स कितने डिले हो गए, आज महेन (अरे, उसका पति!) से इस बात पर झगड़ा हुआ, दूसरे टीचर्स ने उसके साथ क्या बदतमीजी की। क्या यह कोई बीमारी है? कुछ तो खुद को सँभालकर रखे। ये क्या कि जो-जो आपके साथ हो रहा है, उसे किसी फटी बरसाती की तरह दूसरों पर टपकाए जा रहे हैं। अब हिलेरी स्वांक को देखो। कितनी अच्छी एक्ट्रैस है! ऑस्कर ले चुकी है। मगर किसी दिन जिम न जा पाए तो डिप्रैस हो जाती है। आजकल अपने एजेंट के साथ गुलछर्रे उड़ाए जा रहे हैं। उसे बिस्तरे में पड़े रहकर नाश्ता करना अच्छा लगता है। क्यों नहीं! नाश्ता भी एजेंट बनाता होगा। ऑस्कर समारोह वाला गाउन एक चैरिटी के लिए नीलाम कर दिया।

12 दिसंबर

कल बिग बाजार गई थी तो एक अलग रंग का शैंपू दिखा। अंडे के योक को बेस लेकर बनाया हुआ। मुझे फौरन याद आया कि केट मोस और एंजलिना जोली भी इसी तरह के शैंपू इस्तेमाल करती हैं। कितना अच्छा है कि इंडिया में भी हर चीज मिल जाती है। ये दोनों अपनी स्किन सीधे ऐग व्हाइट से सँवारती हैं। मैंने भी ट्राई किया। अच्छी चीज लगी। यह नहीं कि फेथ हिल की तरह बच्चों के शैम्पुओं से बाल सँवारूँ। कितनी चार्मिंग है फेथ हिल! कैसी सुराही-सी गर्दन और कितनी वैल मैनटेंड! मगर किस्मत! सात-आठ साल निभा ले जाने के बाद पता लग रहा है कि टिम मेकग्रो के साथ उसकी शादी टूट रही है। कारण? वही जो होता है : मर्दों को इधर-उधर मुँह मारने की आदत। वैसे इन दिनों हर कोई अलग हो रहा है। पहले सैफ-अमृता हुए, फिर लारा दत्ता-केली दोरजी करीना-शाहिद विक्रम भट्ट-अमीषा पटेल। और तो और, इस बुढ़ापे में आमिर खान के माँ-बाप भी…। सीन पैक और रोबिन राइट अलग हो ही रहे हैं।

मुझे लगता है, वहाँ का सिस्टम अच्छा है। जब तक खुशी-खुशी चले, संबंध चलाओ, न चले तो मूव ऑन। हमारे यहाँ की तरह नहीं कि गले की घंटी बने रहो। हमारे स्टाफ में ही कितने कुलीग्स अपने स्पाउसेस से त्रस्त-परेशान हैं। कई तो ऐसे जो बात चलने पर ही कन्नी काट जाते हैं। दुनिया भर का हँस-बोल लेंगे मगर ‘उसका’ जिक्र तक नहीं आने देंगे। उनको ऐसे क्या दुख हैं कि हर दम हँसी-ठिठोली करते रहते हैं। कॉलिज की हर कमेटी में अपने को उलझाकर रखेंगे। तलाक के मामले हमारे यहाँ बढ़ जरूर रहे हैं मगर जिस तरह कुएँ में भाँग पड़ी है उसके हिसाब से तो ये अभी टिप ऑफ आइसबर्ग ही हैं। सही-गलत का फैसला कौन करे? अपनी-अपनी जगह दोनों सही। मगर मैं सोचती हूँ कि ब्रेड पिट को जेनिफर एंस्टिन से अलग नहीं होना चाहिए था। दे वर सच ए परफैक्ट लुकिंग कपल। कोई कुछ भी कहे, एंस्टिन के मुकाबले एंजलिना जोली कहीं नहीं टिकती है। साउथ का वह कौन-सा इंडियन पी.एम. था, उसके जैसा तो पाउटिंग फेस है। बस फिगर ठीक है। मगर इस धंधे में फिगर तो सबको ठीक रखनी ही पड़ती है। ईवा लोंगोरिया क्या कम है? चेहरा भी खूब चमकता-सा है। ‘डैस्परेट हाउसवाइव्स’ की जान है वह। टोनी पारकर से शादी के बाद काफी खुश दिखती है। खाली टाइम में अपने पैट्स के साथ खेलती है और कंप्यूटर का ‘क ख’ नहीं जानती है। अपनी रूपा गांगुली से काफी मिलती है।

आजकल हिरोइनें खिलाड़ियों के पीछे पगलाई रहती हैं। हमारे यहाँ पहले किम शर्मा थी, अब दीपिका भी उसी रास्ते पर है। कोलिन मैकलोघलिन ने तो मॉडलिंग करते हुए ही वेन रूनी को पकड़ लिया। शेरिल ने एशले कोल को। थोड़े दिनों बाद सबको पाँव तले की जमीन दिखने लगती है। गेमा एटकिंसन को देख लो। दो साल के अंदर-अंदर रोनाल्डो ने उससे पीछा छुड़ा लिया। अब मीडिया को ‘सिंगल एंड रेडी टु मिंगल’ का ऐलान करती घूम रही है। यही हाल पॉप सिंगर्स का है। केमरून डाइज को देखो। उम्र के बावजूद कैसा गुलाब-सा खिलता चेहरा है। कैसी प्राकृतिक मासूम हँसी! पिछले दिनों आई उसकी फिल्म ‘इन हर शूज’ में क्या मस्त भूमिका थी! मगर तीन साल से ऊपर साथ रहने के बाद जस्टिन टिंबरलेक कैसा चलता बना! वह भी क्रिसमस से पहले।

मैं सोचती थी कि पहले जस्टिन का स्कारलेट जोहनसन और जेसिका बीअल के साथ ही चक्कर था मगर पिछले दिनों ऑक्सफोर्ड बुक स्टोर की टी-शॉप में एक पत्रिका देखी तो पता चला कि उसका सबसे पहले तो ब्रिटनी के साथ ही खूब लंबा अफेअर रहा था। कुछ लोग तो टिंबरलेक को ही ब्रिटनी के पहले बच्चे ‘सीन’ का पिता कहते हैं। भगवान जाने क्या सच है! अन्ना स्मिथ की लड़की की तरह उसका कोई डीएनए टेस्ट तो हुआ नहीं। अन्ना कोरनिकोवा को भी देखिए, इग्लेशियास के साथ कब तक चल पाती है! जो भी हो, केमरून डाइज की तरह मुझे भी सुबह देर तक सोना अच्छा लगता है। कॉलिज की वजह से जल्दी उठना पड़ता है वरना…।

शुक्रवार

आज तीसरे पीरियड के बाद काफी बच्चे भाग गए। होगी कोई मेगा रिलीज। स्टाफ रूम में आई तो लोग खूब इधर-उधर की बातें करने में मशगूल थे। ऐसे मानो पूरे देश का बोझ उन्हीं के कंधों पर आन पड़ा हो। वाइस प्रिंसिपल चंद्रमा प्रकाश शास्त्री की तबियत कई दिनों से ठीक नहीं चल रही है तभी वे बड़ी आशंका जतलाते कह रहे थे कि भारत की अर्थव्यवस्था के बारे में देश-विदेश में इन दिनों जो छवि प्रोजेक्ट की जा रही है उसमें ढेर सारे झोल हैं। खुद एक शहर में बैठकर वे देश के नीति-निर्धारकों को इस बात के लिए गरियाते दिख रहे थे कि गाँव-देहात की हकीकतों के सामने चंद शहरों में वित्त, टेलिकॉम और इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में बतलाई जानेवाली तरक्की कितनी खौफनाक और अधूरी है। लोग एक तरफ गरीबी-बेरोजगारी से तो दूसरी तरफ अवसाद और अकेलेपन से ग्रस्त हुए पड़े हैं। बेशुमार तरह के अपराधों के रास्ते खोज रहे हैं। आत्महत्या कर रहे हैं। पूरे तंत्र में छा रहे असंतुलन से नई-नई व्याधियाँ पैदा हो रही हैं। सारे टीचर्स चुप थे। चुप रहने में ही समझदारी थी वरना बुड्ढा शास्त्री तो तैश में आ जाता। बताइए, यह भी कोई बात हुई? आप हर चीज में अड़ंगी मार दीजिए। कितना कुछ तो यहाँ हो रहा है! फिर आत्महत्याओं का क्या? किसी का कुछ पता लगता है कि कब कमरा बंद कर ले और पंखे से झूल जाए? खेत में छिड़कने के बदले कोई किसान पेस्टीसाइड्स को बूँक डाले तो इसमें सोनिया गांधी क्या कर लेगी! पिछले दिनों हीथ लेजर ने नहीं कर ली थी!

शास्त्रीजी के जाने के बाद सारे टीचर्स क्विज खेलने लगे। साइकोलॉजी की आरती (जिसे मैं आरटी कहती हूँ – आर्टिस्टिक मानो तो और रोमांटिक मानो तो) ने मुझसे पूछा : बताओ भारत में कितने राज्य हैं? पहली बात तो मैं ज्योग्राफी या हिस्ट्री नहीं पढ़ाती हूँ। दूसरे, आए दिन तो ये बदलते रहते हैं। कीरा नाइटले की तरह मेरी बस दीर्घकालीन याददाश्त ठीक है। हमारे टाइम में तो इक्कीस और सात का आँकड़ा हुआ करता था -इक्कीस राज्य और सात केंद्रशासित प्रदेश। मैंने वही कह दिया तो सब हँस पड़े। हो सकता है एकाध कम-ज्यादा हो गए हों। उससे क्या फर्क पड़ता है! मुल्क तो वही है।

अरे, यह ग्लोबलाइजेशन का टाइम है या फुटकर राज्यों की गिनती का? हाँ, नहीं तो!

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