घाटी की पुकार | नरेंद्र जैन
घाटी की पुकार | नरेंद्र जैन

घाटी की पुकार | नरेंद्र जैन

घाटी की पुकार | नरेंद्र जैन

घाटी पुकारती है 
यह घाटी की पुकार है 
पारदर्शी और धूप से भरी 
संतूर, गिटार और बाँसुरी की जुगलबंदी पर टिका है 
समूचा अस्तित्व

बहुत पुरानी है यह पुकार 
लगभग तीस वर्षों से एकाएक कभी सुनाई दे जाती 
दरअसल यह एक खामोशी है जो पुकारती है

वह घाटी कैसी होगी 
जहाँ से आ रही यह पुकार

शायद राजकुमार चित्रित कर सकें उसे 
और वह उनका सबसे बड़ा लैंडस्कैप हो

शायद यह घाटी 
हमारे भीतर के भूगोल का हिस्सा हो

शायद बज रहे हों वाद्य स्मृतियों में 
शायद हो यह पुकार दुःस्वप्नों की

घाटी पुकार रही है 
यह घाटी की पुकार है

सबसे तरल 
और 
मानवीय

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