घास की हरी पत्तियों में | एकांत श्रीवास्तव
घास की हरी पत्तियों में | एकांत श्रीवास्तव

घास की हरी पत्तियों में | एकांत श्रीवास्तव

घास की हरी पत्तियों में | एकांत श्रीवास्तव

घास की हरी पत्तियों में
छिपी हुई पगडंडियाँ थीं
जिन पर हम चलते थे

हम चाहते थे कोई साँप हमें डस ले
मगर हर साँप चौंककर रास्ता छोड़ देता था
मृत्यु हर बार जीने का एक मौका देती थी
और हम जिए चले जाते थे
अपने लिए कम
दूसरों के लिए ज्यादा

हम खुश दिखते थे
क्योंकि जीने के लिए खुश दिखना था
इस समाज में

दुख के सिक्कों को
मिट्टी के गुल्लक में डालते हुए
इस तरह कि खन्न की भी कोई आवाज न हो।

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