सारी रात तो नाची सागर-सी
क्या लेकर ? शंख, कौड़ी की स्मृति ?
रात भर तो छंदित किया,
मालती लता-सा
क्या देकर ? सुगंधयुक्त कलंक
फूलरेणु या फिर दुबारा
लौट आने की प्रतिश्रुति।
घेर घुमेर घागरा रात भर
प्याले छलकी सुरा,
रात भर…
जाते हो ? जाओ
अब खोजूँगी नहीं,
किसी क्यारी में तुम्हारा छोड़ा
उत्तरीय।
खोजूँगी क्या ? स्वर्ण मुंदरी
पहनूँगी अपनी किस अँगुली में ?
कहूँगी ना ? विरह व्यथा
दूती को ?
पूछूँगी ना ? कांत की कुशल हनु को ?
जाओ ! जाओ
पता देते जाओ पता
शायद, मैं लिख सकूँ
प्रेमपत्र।
परदेसी ! सुन जाओ
अँधेरा भवितव्य मेरा
किसने नाम दिया
चंद्रमुखी ?