एक स्त्री का गीत | हरप्रीत कौर
एक स्त्री का गीत | हरप्रीत कौर

एक स्त्री का गीत | हरप्रीत कौर

एक स्त्री का गीत | हरप्रीत कौर

वह जंगल गई है
‘इतनी रात गए
क्या अकेले ही चली गई?’
‘नहीं
ढिबरी की रोशनी में गई है’
कब लौटेगी
‘जब गा लेगी’
एकांत में क्या गाएगी
एक स्त्री भला?’
कुछ भी जो जन्मेगा
गाने के लिए जरूरी है
उसका यों जंगल जाना?
क्या वह यों ही नहीं गा सकती?
जैसे चलते फिरते कर लेती है रसोई?’
क्या पूरा का पूरा
आज ही गा लेगी वह वहाँ?’
नहीं जो बच रहेगा
फिर से गाने जाएगी
‘कब जन्मता है उसके भीतर
ऐसा कुछ भी जिसे गाया जा सके?’

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