धूप कोठरी के आइने में खड़ी
हँस रही है
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुसकराते
मौन आँगन में
मोम-सा पीला
कोमल नभ
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है
(1959)
धूप कोठरी के आइने में खड़ी
हँस रही है
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुसकराते
मौन आँगन में
मोम-सा पीला
कोमल नभ
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है
(1959)