धूप कोठरी के आइने में खड़ी
हँस रही है
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुसकराते
मौन आँगन में
मोम-सा पीला
कोमल नभ
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है
(1959)
धूप कोठरी के आइने में खड़ी
हँस रही है
पारदर्शी धूप के पर्दे
मुसकराते
मौन आँगन में
मोम-सा पीला
कोमल नभ
एक मधुमक्खी हिलाकर फूल को
बहुत नन्हा फूल
उड़ गई
आज बचपन का
उदास माँ का मुख
याद आता है
(1959)
गाँव बेचकर शहर खरीदा, कीमत बड़ी चुकाई है।जीवन के उल्लास बेच के, खरीदी हमने तन्हाई है।बेचा है ईमान धरम तब, घर में शानो शौकत आई है।संतोष बेच तृष्णा खरीदी, देखो कितनी मंहगाई है।। बीघा बेच स्कवायर फीट, खरीदा ये कैसी सौदाई है।संयुक्त परिवार के वट वृक्ष से, टूटी ये पीढ़ी मुरझाई है।।रिश्तों में है भरी…
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