[एक दस-ग्यारह साल की लड़की] गोल हैं खूब मगरआप तिरछे नजर आते हैं जरा।आप पहने हुए हैं कुल आकाशतारों-जड़ा;सिर्फ मुँह खोले हुए हैं अपनागोरा चिट्टागोल मटोल,अपनी पोशाक को फैलाए हुए चारों सिम्त।आप कुछ तिरछे नजर आते हैं जाने कैसे– खूब हैं गोकि ! वाह जी वाह !हमको बुद्धू ही निरा समझा है !हम समझते ही […]
Tag: Shamser Bahadur Singh
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रेडियो पर एक योरपीय संगीत सुनकर
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धूप कोठरी के आइने में खड़ी
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शाम होने को हुई
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सूना-सूना पथ है, उदास झरना
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सूरज उगाया जाता
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