दर्द | अजय पाठक
दर्द | अजय पाठक

दर्द | अजय पाठक

दर्द | अजय पाठक

दर्द डाकिया ले आया है
चिट्ठी अपने नाम
इस चिट्ठी में छिपे हुए हैं
संदेशे गुमनाम।

किसने भेजा और कहाँ से
कुछ भी नहीं लिखा
कुशलक्षेम का एक शब्द भी
उसमें नहीं लिखा

गूँगे अक्षर, आड़े तिरछे
बीसों पूर्ण विराम।

संबोधन में लिखा हुआ है
मेरे ‘परमसखा’
तुम भूले, पर मैंने तुमको
हरदम याद रखा

याद किया करता हूँ तुमको
सुबह यथावत शाम।

तुम भागे-भागे फिरते हो
मुझसे कहाँ-कहाँ
तुम जाओगे जहाँ-जहाँ पर
मैं भी वहाँ-वहाँ

रिश्ते नाते, प्रेम सभी हैं
मेरे रूप तमाम।

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