पापा को चिट्ठी लिखते वक्त
हमेशा माँ थोड़ी जगह
मेरे लिए छोड़ देती थी
शुरू-शुरू में उस जगह पर मैं
फूल, तितली, मुर्गी और कौए
की तसवीर बनाता था।
धीरे-धीरे मैं भी कुछ लिखने लगा
माँ, पापा, दीदी…
आज बीस साल बाद
पीछे मुड़कर देखूँ तो
वे चिट्ठियाँ उत्प्रेरक थीं
मेरे लेखन के पीछे।

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