चार दिनों के इस जीवन में | देवमणि पांडेय
चार दिनों के इस जीवन में | देवमणि पांडेय

चार दिनों के इस जीवन में | देवमणि पांडेय

चार दिनों के इस जीवन में | देवमणि पांडेय

चार दिनों के इस जीवन में
कुछ ऐसे भी काम करो
सुबह-सुबह मुस्काना सीखो
हँसते हँसते शाम करो

पलकों पर कुछ ख्वाब सजाओ
रोशन करो उम्मीदों को
जीत के बदले हार मिले तो
कोसो नहीं नसीबों को
बेशक इक दिन मिलेगी मंजिल
जो आराम हराम करो

इस दुनिया में कोई किसी को
सच्ची आस नहीं देता
जो अपना है वो भी अक्सर
दुख में साथ नहीं देता
फिर भी सबसे प्यार जताओ
सबसे दुआ सलाम करो

अगर हो चाहत तो काँटों में
कलियाँ भी खिल जाती हैं
गम की गलियों में ढूँढ़ो तो
खुशियाँ भी मिल जाती हैं
थाम के उँगली उम्मीदों की
दुख सारा नीलाम करो

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *