किस नगर से आ रही हैं शोख बासंती हवाएँ | देवमणि पांडेय
किस नगर से आ रही हैं शोख बासंती हवाएँ | देवमणि पांडेय

किस नगर से आ रही हैं शोख बासंती हवाएँ | देवमणि पांडेय

किस नगर से आ रही हैं शोख बासंती हवाएँ | देवमणि पांडेय

धूप का ओढ़े दुशाला और महकाती दिशाएँ
किस नगर से आ रही हैं शोख बासंती हवाएँ

आम के यूँ बौर महके
भर गई मन में मिठास
फूल जूड़े ने सजाए
नैन में जागी है प्यास
कह रही कोयल चलो अब प्रेम का इक गीत गाएँ

झूमती मदहोश होकर
खेत में गेहूँ की बाली
लाज का पहरा है मुख पर
प्यार की छलकी है लाली
धड़कनें मद्धम सुरों में दे रहीं किसको सदाएँ

ओढ़कर पीली चुनरिया
आँख में सपना सजाए
कर रही सरसों शिकायत
दिन ढला सजना न आए
साँझ बोली चल सखी हम आस का दीपक जलाएँ

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *