चाँदमारी | नरेंद्र जैन
चाँदमारी | नरेंद्र जैन

चाँदमारी | नरेंद्र जैन

चाँदमारी | नरेंद्र जैन

चाँदमारी एक खास जगह होती है 
जहाँ खड़े किए गए नकली पुतलों को 
गोली मारी जाती है

कोई न कोई होता ही है 
निशाने की जद में

इधर कला और संस्कृति और साहित्य के 
प्रभुतासंपन्न केंद्र विकसित किए जा रहे 
चाँदमारी के लिए 
शिकार की खोज जारी रहती है 
खास किस्म का वातावरण 
हवा और धूप भी 
खास कोण से बहती और उतरती 
एक खास किस्म के वैचारिक सद्‍भाव पर दिया जाता बल 
प्रकारांतर से एक खास लक्ष्य की ओर रहते अग्रसर

यहाँ जब संपन्न होती चाँदमारी 
गोलियों की आवाजें सुनाई नहीं देतीं 
निहायत ही खास ढंग से मारा जाता कोई 
किसी को आभास तक नहीं होता 
और आँखें निकाल ले जाते वे 
वे इसे नई दृष्टि का विकसित होना कहते हैं

वे यकीन नहीं करते 
गोली मार देने जैसे तरीकों में 
वे भाषा में सेंध लगाते हैं 
और निर्वासित करते किसी को 
भाषा के जीवंत कालखंड से 
इस चाँदमारी में 
जिस्म पर नहीं आती कोई खरोंच 
लेकिन बहुत से विचार हताहत होते हैं

यहाँ से गुजर कर भी 
नई शक्ल में आ रहे 
कुछ विचार।

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