बोल राजा, स्वर अटूटे | माखनलाल चतुर्वेदी
बोल राजा, स्वर अटूटे | माखनलाल चतुर्वेदी

बोल राजा, स्वर अटूटे | माखनलाल चतुर्वेदी

बोल राजा, स्वर अटूटे | माखनलाल चतुर्वेदी

बोल राजा, स्वर अटूटे 
मौन का अब बाँध टूटे

जी से दूर मान बैठी थी 
जी से कैसे दूर? बता दो? 
ऐ मेरे बनवासी राजा! 
दूरी बनी कुसूर? बता दो? 
उठ कि भू पर चाँद टूटे 
बोल राजा, स्वर अटूटे 
मौन का अब बाँध टूटे!

उस दिन जिस दिन तुम हँस – 
उट्ठे, मैंने पुनर्जन्म को पाया, 
फिर मेरे जी में तुम जनमें 
मैं फिर नीला-सा हो आया, 
अब वियोगिन साँझ टूटे, 
बोल राजा, स्वर अटूटे, 
मौन का अब बाँध टूटे!

जीवन के इस बगीचे में 
सुमन खिले, फल भी तो झूले, 
पर मैंने सब फेंक दिए 
वे फले-फूले, वे फले-फूले! 
प्राण तू मुझसे न छूटे, 
बोल राजा, स्वर अटूटे, 
मौन का अब बाँध टूटे!

मेरे मानस में संकट के – 
कुंज शीश ऊँचा कर आए, 
तुतलाने का वचन दिए 
मेरी गोदी में तुम भर आए, 
बोल अपने कर न झूठे, 
बोल राजा, स्वर अटूटे 
मौन का अब बाँध टूटे!

जी की माला पर लिख दूँ मैं 
कैसे तेरा देश निकाला? 
मेरी हर धक-धक खिल उट्ठी 
फिर क्यूँ चुनूँ फूल की माला? 
सुमन के छाले न फूटे, 
बोल राजा, स्वर अटूटे 
मौन का अब बाँध टूटे!

जब कि मौन से भी ध्वनि झरती 
तब ध्वनि की ध्वनि रोक न राजा 
चल कि प्रलय भाँवरिया खेलें! 
प्राणों के आँगन में आजा; 
आज मैं बन लूँ बधूटी 
‘बाँध-गाँठ’ कि गाँठ छूटी! 
काढ़ जी पर बेल-बूटे 
बोल राजा, स्वर अटूटे 
मौन का अब बाँध टूटे!

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