बोल राजा, बोल मेरे | माखनलाल चतुर्वेदी
बोल राजा, बोल मेरे | माखनलाल चतुर्वेदी

बोल राजा, बोल मेरे | माखनलाल चतुर्वेदी

बोल राजा, बोल मेरे | माखनलाल चतुर्वेदी

बोल राजा, बोल मेरे!

दूर उस आकाश के – 
उस पार, तेरी कल्पनाएँ – 
बन निराशाएँ हमारी, 
भले चंचल घूम आएँ, 
किंतु, मैं न कहूँ कि साथी, 
साथ छन भर डोल मेरे! 
बोल राजा, बोल मेरे!

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विश्व के उपहार, ये- 
निर्माल्य! मैं कैसे रिझाऊँ? 
कौन-सा इनमें कहूँ ‘मेरा’? 
कि मैं कैसे चढ़ाऊँ? 
चढ़ विचारों में, उतर जी में, 
कलंक टटोल मेरे। 
बोल राजा, बोल मेरे!

ज्वार जी में आ गया 
सागर सरिस खारा न निकले; 
तुम्हें कैसे न्यौत दूँ 
जो प्यार-सा प्यारा न निकले; 
पर इसे मीठा बना 
सपने मधुरतर घोल तेरे। 
बोल राजा, बोल मेरे!

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श्यामता आई, लहर आई, 
सलोना स्वाद आया, 
पर न जी के सिंधु में 
तू बन अभी उन्माद आया, 
आज स्मृति बिकने खड़ी है – 
झिड़कियों के मोल तेरे। 
बोल राजा, बोल मेरे!

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