बच्ची का घर | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता
बच्ची का घर | प्रेमशंकर शुक्ला | हिंदी कविता

दुआर के इस कोने पर
एक बच्ची ने
अभी-अभी बनाया है
अपना घर

बच्ची का घर
बच्ची जितना सुंदर
और है अस्त-व्यस्त
भरे है वह अपने भीतर
बच्ची जितना बचपन
मगनमन बच्चियाँ जिसमें
बना रही हैं
माटी के छप्पन व्यंजन!

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